चिन्मय मिशन साहित्य >> आत्मबोध आत्मबोधस्वामी चिन्मयानंद
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आत्मबोध अपने आपमें एक ध्यान साधना है। स्वामी जी के द्वारा अंग्रेजी व्याख्या का हिन्दी रूपान्तर किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
समर्पण
‘आत्मबोध’ जैसी पुस्तकों का अध्ययन ही अपने-आप में
ध्यान-साधना है। स्वामीजी की अंग्रेजी व्याख्या का हिन्दी
रूपान्तरण
करते समय हमें ऐसा लगता रहा है कि मानो हम उनके चरण-कमलो में
बैठकर
ध्यान कर रहे हों।
ये तो हमारी श्रद्धा के पुष्प हैं। अनुवाद अच्छा हो पाया कि नहीं इसके विषय में हम क्या कह सकते हैं। जो कुछ भी इसमें अच्छाई मिलती है, वह तो स्वामी जी की कृपा ही है और जो कमी रह गई है, वह हमारी है।
ये तो हमारी श्रद्धा के पुष्प हैं। अनुवाद अच्छा हो पाया कि नहीं इसके विषय में हम क्या कह सकते हैं। जो कुछ भी इसमें अच्छाई मिलती है, वह तो स्वामी जी की कृपा ही है और जो कमी रह गई है, वह हमारी है।
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ
के ० एल० खरबन्दा
ओम प्रकाश बतरा
ओम प्रकाश बतरा
प्रस्तावना
विज्ञान की कोई भी ऐसी पाठ्य-पुस्तक विद्यार्थियों के लिए निर्धारित नहीं
की जा सकती जिसमें प्रयुक्त पदों और पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या से
सम्बन्धित प्रारम्भिक अध्याय न हों,। एक वैज्ञानिक पुरुष जगत् को अपने ही
दृष्टिकोण से देखता है। वह उन तथ्यों का भी अनुभव करता है जो दूसरों के
लिए दृष्टिगोचर नहीं हैं। उसे कुछ असामान्य अनुभव होते हैं। अतः उसे अपनी
भाषा में कुछ ऐसे नये शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है जो उसके लिए विशेष
अर्थ और गहन भाव रखते हैं। यदि गुरु और शिष्य इन असाधारण शब्दों को
ठीक-ठीक नहीं समझते, तो ज्ञान का आदान-प्रदान असम्भव ही रहता है। इसलिए
विज्ञान की प्रत्येक पाठ्य-पुस्तक में प्रारम्भ के कुछ अध्याय ऐसे ही
पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या से सम्बन्धित होते हैं।
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