कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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रात हुई तो घर में आया।
सुबह हुई तब कहीं न पाया।
कभी न वह हो पाया मेरा।
क्या सखि, साजन? नहीं, अँधेरा।।
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तन से लिपटे, मन को भाये।
मन में अनगिन खुशियाँ लाये।
उसके बिना न चलती गाड़ी।
क्या सखि, साजन? ना सखि, साड़ी।।
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खरी खरी वह बातें करता।
सच कहने में कभी न डरता।
सदा सत्य के लिए समर्पण।
क्या सखि, साधू? ना सखि, दर्पण।।
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