कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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हाट दिखाये, सैर कराता।
जो चाहूँ वह मुझे दिलाता।
साथ रहे तो रहूँ सहर्ष।
क्या सखि, साजन? ना सखि, पर्स।।
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जब देखूं तब मन हरसाये।
मन को भावों से भर जाये।
चूमूँ, कभी लगाऊँ छाती।
क्या सखि, साजन? ना सखि, पाती।।
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रातों में सुख से भर देता।
दिन में नहीं कभी सुधि लेता।
फिर भी मुझे बहुत ही प्यारा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, तारा।।
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