कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
|
0 |
त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
¤
मुझे देखकर लाड़ लड़ाये।
मेरी बातों को दोहराये।
मन में मीठे सपने बोता।
क्या सखि, साजन? ना सखि, तोता।।
¤
सबके सन्मुख मान बढ़ाये।
गले लिपटकर सुख पंहुचाये।
मुझ पर जैसे जादू डाला।
क्या सखि, साजन? ना सखि, माला।।
¤
जब आये तब खुशियाँ लाता।
मुझको अपने पास बुलाता।
लगती मधुर मिलन की बेला।
क्या सखि, साजन? ना सखि, मेला।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book