कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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पाकर उसे फिरूँ इतराती।
जो मन चाहे सो मैं पाती।
सहज नशा होता अलबत्ता।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सत्ता।।
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मैं झूमूँ तो वह भी झूमे।
जब चाहे गालों को चूमे।
खुश होकर नाचूँ दे ठुमका।
क्या सखि, साजन? ना सखि, झुमका।।
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वह सुख की डुगडुगी बजाये।
तरह तरह से मन बहलाये।
होती भीड़ इकट्ठी भारी।
क्या सखि, साजन? नहीं, मदारी।।
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