कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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रंग-रूप पर वह बलिहारी।
प्रेम लुटाता बारी बारी।
रस का लोभी करता दौरा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, भौंरा।।
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उससे जीवन सुखमय चलता।
वह न रहे तो जीवन खलता।
कैसे कहूँ कि रिश्ता कैसा।
क्या सखि, प्रेमी? ना सखि, पैसा।।
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करता हरित, लुटा खुशहाली।
भरता मन की गागर खाली।
मेरे लिए बहुत मनभावन।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सावन।।
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