कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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गोल गोल है, सबका प्यारा।
जो भी देखे लगे दुलारा।
जिसे न भाये, मूरख बंदा।
क्या सखि, सिक्का? ना सखि, चंदा।।
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दुनिया भर में मान बढ़ाये।
भाग्यवान ही उसको पाये।
मन्दभाग्य जो करे अनिच्छा।
क्या सखि, कुर्सी? ना सखि, शिक्षा।।
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साथ मिले तो साथी झूमे।
पागल करके धरती चूमे।
और अकल पर डाले ताला।
क्या सखि, जोकर? ना सखि, हाला।।
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