कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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जब भी चाहूँ, हाट कराता।
सारी चीजें खुद ही लाता।
हाथ पकड़कर चलता छैला।
क्या सखि, साजन? ना सखि, थैला।।
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सखि, उसका तन बड़ा गठीला।
पर अंदर से बड़ा रसीला।
सिर पर पगड़ी, हाथ न पन्ना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, गन्ना।।
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जब जब उसको विरह सताये।
पी, पी कहकर वह चिल्लाये।
सखि, न लगाना उसको पातक।
क्या सखि, विरहिन? ना सखि, चातक।।
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