कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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जो मैं देती, वह रख लेती।
जब भी मांगूँ, वापिस देती।
लम्बी चौड़ी, फिर भी प्यारी।
क्या सखि, दासी? ना, अलमारी।।
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भूख लगे स्मृति में आता।
जो कुछ चाहो वही पकाता।
बना रसोईघर का दूल्हा।
क्या बाबर्ची, ना सखि, चूल्हा।।
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चिकना है वह मन को भाये।
रोज काम में हाथ बटाये।
किन्तु सहेली, वह है टकला।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चकला।।
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