कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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जैसा बोलूँ वैसा बोले।
मेरे मन में मिश्री घोले।
प्यार नहीं कम उससे होता।
क्या सखि, बेटा? ना सखि, तोता।।
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हर दिन आकर मुझे जगाता।
मैं निःशब्द कि इतना भाता।
ख्वाबों से भरता मन मेरा।
क्या सखि, प्रियतम? नहीं, सवेरा।।
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धन, आभूषण, सुख से भरता।
मुझको मन की रानी करता।
मुझ पर करता जादू अपना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सपना।।
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