कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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दुनिया भर की बात बताये।
तरह तरह से वह समझाये।
उसके बिना जिंदगी थोथी।
क्या सखि, साजन? ना सखि, पोथी।।
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उसके आते रौनक आये।
वह जाये तो कुछ न सुहाये।
उससे सर्दी गर्मी टली।
क्या सखि, साजन? ना सखि, बिजली।।
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जो मैं बोलूँ वैसा बोले।
मुझे देखकर खुश हो डोले।
घर छोड़े पर सगा न होता।
क्या सखि, प्रेमी? ना सखि, तोता।।
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