कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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तन को मन को ताकत देती।
बहु बाधाएँ झट हर लेती।
हुलसाती मन हुलसी हुलसी।
क्या सखि, माता? ना सखि, तुलसी।।
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वह आये तो तन मन हरसे।
चारों ओर रंग रस बरसे।
सबको भाती हँसी-ठिठोली।
क्या सखि, जोकर? ना सखि, होली।।
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लोहू-प्यासा, दुःख का दाता।
मौका पाकर खूब सताता।
हिंसक बातें अक्षर अक्षर।
क्या सखि, कातिल? ना सखि, मच्छर।।
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