कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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धूप देखकर रूप दिखाता।
संग साथ में दौड़ लगाता।
गायब होता पाकर छाया।
सखी, पसीना? ना सखि, साया।।
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कातर स्वर में माँगे खाना।
हर दिन आना, हर दिन जाना।
दुःख देती उसकी लाचारी।
क्या सखि, पशुधन? नहीं, भिखारी।।
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उसकी काठी भय से भरती।
देह छरहरी करतब करती।
उसने गाड़ा अपना झंडा।
क्या सखि, पट्ठा? ना सखि, डंडा।।
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