कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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उन्हें देख सब जय जय बोलें।
अपने मन की गठरी खोलें।
दर्शन कर मन होता चंगा।
क्या सखि, राजा? ना सखि, गंगा।।
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मेरे तन की भूख मिटाये।
मेरी खातिर जल जल जाये।
किन्तु नहीं बन पाया दूल्हा।
क्या सखि, प्रेमी? ना सखि, चूल्हा।।
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बिठा पीठ पर सुख पहुँचाता।
मुझको लेकर दौड़ लगाता।
ना शर्माता, ना डर थोड़ा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, घोड़ा।।
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