कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
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उसके बिना लगे जग सूना।
मन में जोश भरे वह दूना।
नहीं किसी में बल उस जैसा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, पैसा।।
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घर आँगन में चहक महक कर।
मन में मोद भरे रह रह कर ।
प्यारी, सुखद, खुशी की पेटी।
क्या सखि, चिड़िया? ना सखि, बेटी।।
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काला है पर फिर भी भाता।
वह आँखों में बस बस जाता।
आह भरें जन, होते पागल।
क्या सखि, साजन? ना सखि, काजल।
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