कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
ऐसा माना जाता है कि हिन्दी साहित्य में मुकरी की परम्परा की शुरूआत अमीर खुसरो से होती है। मुकरीकारों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने नये जमाने की मुकरियाँ लिखीं। राजनैतिक मुकरियाँ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का अभिनव प्रयोग हैं।
नागार्जुन ने भी परम्परागत विषयों से हटकर मुकरियाँ लिखीं हैं।
अपने छात्र जीवन में मैंने कुछ मुकरियाँ पढ़ी जरूर थीं किन्तु मैं स्वयं कभी मुकरियाँ लिखूँगा, मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था ।
हिन्दी एवं अंगिका भाषा के साहित्यकार श्री हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ से मेरा मित्र-भाव है। उनसे मेरा परिचय हिन्दी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया (बिहार) के एक साहित्य सम्मेलन में हुआ। चलभाष पर एक-दूसरे की कुशलता एवं साहित्य सृजन के सम्बन्ध में संवाद प्रायः होता ही रहता है। एक दिन श्री हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ ने बताया कि तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के हिन्दी विभाग अध्यक्ष डॉ. बहादुर मिश्र एक मुकरी संकलन का सम्पादन कर रहे हैं। श्री हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ ने मुझे भी इस संकलन के लिए मुकरियाँ भेजने एवं डॉ. बहादुर मिश्र से सम्पर्क करने हेतु कहा।
मैंने तब तक कोई मुकरी नहीं लिखी थी, किन्तु फिर भी डॉ. बहादुर मिश्र से बात करने का मन हुआ। चलभाष पर उनसे सम्पर्क हुआ तो उन्होंने बताया कि मुकरी संकलन शीघ्र ही प्रेस में जा रहा है। आप दो दिन में अपनी मुकरियाँ भेज दें। जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मैंने उस समय तक कोई मुकरी नहीं लिखी थी फिर भी मैंने उन्हें कहा कि मैं प्रयास करूंगा। परिणामस्वरूप मैंने बाईस मुकरियाँ लिखीं एवं दो दिन बाद उन्हें डॉ. बहादुर मिश्र के पास भेज दिया। मेरी मुकरियाँ उन्हें पसंद आयीं। उन्होंने मुझे और मुकरियाँ लिखने की सलाह दी। मुकरी जैसे काव्य रूप में लिखना मुझ जैसे साधारण व्यक्तित्व के लिए असाधारण बात ही थी, फिर भी मैंने एक सौ एक मुकरियाँ लिखकर इसे संग्रह का रूप देने का प्रयास किया है।
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