कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
चंदा, तारा, फुलवारी, सावन, सवेरा, जाड़ा इत्यादि को आधार बनाकर रचित मुकरियाँ एक दर्जन से अधिक हैं। संकलन की पहली मुकरी ‘चंदा’ पर आधारित है, यथा - जब भी देखूँ, आतप हरता / मेरे मन में सपने भरता। / जादूगर है, डाले फंदा। / क्या सखि साजन? ना सखि चंदा / इसी तरह, मच्छर-विषयक मुकरी देखिए - बिना बुलाये, घर आ जाता / अपनी धुन में गीत सुनाता / नहीं जानता ढाई अक्षर / क्या सखि साजन ? ना सखि, मच्छर। नारी के कर्णाभूषण झुमका पर केन्द्रित मुकरी देखिए - मैं झूमूँ तो वह भी झूमे / जब चाहे गालों को चूमे । / खुश होकर नाचूँ दे ठुमका / क्या सखि, साजन ? ना सखि, झुमका । अब महँगाई से जुड़ी मुकरी पर गौर फरमाइए - ‘‘जब-जब आती दुःख से भरती / पति के रुपये-पैसे हरती / उसकी आवक रास न आई / क्या सखि सौतन? ना महँगाई / देखा न, अंतिम मुकरी का रंग-ढंग बदल गया है।
ठकुरेला जी की ये मुकरियाँ 16-16 मात्राओं के क्रम-विधान से कुल 64 मात्राओं में रचित विशुद्ध मुकरियाँ हैं, जिनमें नियमपूर्वक चरणान्तर्गत आठवीं मात्रा पर यति का विधान किया गया है।
इस तरह ठकुरेला जी न केवल विषय की दृष्टि से बल्कि रूप और व्याकरण की दृष्टि से भी हिन्दी के महत्वपूर्ण मुकरीकार ठहरते हैं। विश्वास है, यह पुस्तक पाठकों का मनोरंजन के साथ-साथ मनः प्रबोधन भी करेगी। इस तरह यह अपने शीर्षक ‘आनन्द मंजरी’ को सार्थकता प्रदान करेगी। यह पुस्तक हिन्दी में एक बड़े विधागत अभाव की पूर्ति में भी सहायक सिद्ध होगी। शुभास्ते पन्थानः ।
18 अक्टूबर, 2019
तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय
भागलपुर - 812007 (बिहार)
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