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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


अयूब खान का 'शत्रु सम्पत्ति कानून' अवामी लीग के कानून मंत्री ने फिर से संसद में बहाल कर दिया। उसका नाम अवश्य बदल दिया था। उन्होंने नाम रखा, अर्पित सम्पत्ति कानून। जो हिन्दू देश छोड़कर चले गये, उनकी सम्पत्ति ‘शत्रु सम्पत्ति' होती थी। सुधामय के चाचा, मामा, ताऊ क्या देश के शत्रु थे? इस ढाका शहर में ताऊ व मामा के बड़े-बड़े मकान थे। सोनार गाँव, नरसिंदी, किशोरगंज, फरीदपुर में भी मकान थे। इनमें से कोई कॉलेज बन गया, कोई पशु अस्पताल, कोई परिवार कल्याण आफिस तो कोई आयकर, रजिस्ट्री आफिस। अनिल काका के घर बचपन में सुधामय आते थे। रामकृष्ण रोड के विशाल मकान में दस घोड़े थे। अनिल काका उन्हें घोड़े पर बैठाते थे। वही सुधामय दत्त अभी टिकाटुली के एक अँधेरे, सीलन वाले घर में दिन काट रहे हैं। लेकिन पास ही में उनके चाचा का घर है, जो अब सरकार के नाम पर है। 'अर्पित सम्पत्ति कानून' अगर बदलकर 'सम्पत्ति उत्तराधिकार कानून' बनता तो कई हिन्दुओं की दुर्दशा दूर हो जाती। सुधामय ने यह प्रस्ताव अनेक बड़े-बड़े लोगों के समक्ष रखा था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वे अपने अचल-अपाहिज जीवन में आजकल क्लांति अनुभव कर रहे हैं। जिन्दा रहने का कोई अर्थ ढूंढ़ नहीं पाते। वे जानते हैं कि इस बिस्तर पर निःशब्द मर जाने से भी किसी की कोई हानि नहीं होगी। बल्कि लगातार रात-रात जागने और सेवा करने के दायित्व से किरणमयी को छुटकारा मिल जायेगा।

1965 के पाक-भारत युद्ध की विशेष परिस्थिति में औपनिवेशिक पाकिस्तानी शासकों के साम्प्रदायिक विद्वेष के चलते 'शत्रु सम्पत्ति कानून' बना था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी बांग्लादेश को चालाकी से उसी कानून पर टिके रहते देखकर सुधामय हैरान हैं। एक स्वतंत्र देश के लिए, बंगाली जाति के लिए क्या यह एक कलंकपूर्ण घटना नहीं है? इस कानून ने दो करोड़ नागरिकों के मौलिक, गणतांत्रिक और नागरिक अधिकारों को छीना है। शासन ने समान अधिकार और सामाजिक समानता की नीति के विरुद्ध इस कानून को बहाल रखकर दो करोड़ नागरिकों को उनके पुश्तैनी घरों से बेदखल कर असहाय, सर्वनाशी स्थिति की ओर ठेल दिया है। इसी कारण हिन्दुओं में यदि गहरी असुरक्षा की भावना पैदा हो तो इसमें हिन्दुओं का क्या दोष? समाज की मिट्टी के अन्दर तक साम्प्रदायिकता का बीज बोया जा रहा है, बांग्लादेश के संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक के लिए समान सुरक्षा और समान अधिकार की व्यवस्था होने के बावजूद सरकार ‘अर्पित (शत्रु) सम्पत्ति कानून' को बहाल कर संविधान का उल्लंघन करते हुए राष्ट्रीय स्वाधीनता और सार्वभौमिकता के प्रति घोर अनादर भाव दिखा रही है। लेकिन लोकतांत्रिक बांग्लादेश के संविधान में मौलिक अधिकार की यह धारा कहती है :

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