लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'अच्छा!' सुरंजन चाय का प्याला तकिये के बगल में रखता है।

'माया के यहाँ आने की बात कह रहे हो, उसके लिए तो और भी दुश्चिंता होगी।'

'तो इसके लिए उसे मुसलमानों की छतरी के नीचे जिन्दगी बितानी होगी?'

सुरंजन का स्वर कठोर हो गया था। वह भी एक बार परिवार के सदस्यों को लेकर कमाल के घर गया था। लेकिन उस समय मुसलमान के घर आश्रय लेने पर उसे ग्लानि नहीं हुई थी। उसे लगा था कि कुछ बुरे लोग बुराई कर रहे हैं, थोड़े ही दिनों में सब ठीक हो जायेगा। सभी देशों में ऐसे दुष्ट लोग रहते हैं लेकिन अब वैसा नहीं लगता। अब यह सब कुछ बुरे लोगों की बुराई नहीं लगती। अब तो संदेह होता है कि यह सब और बड़ा, और भी गंभीर षड्यंत्र है। हाँ, संदेह ही होता है! क्योंकि अब सुरंजन को यह यकीन नहीं होता कि कमाल, बेलाल, केसर, लुत्फर सब असाम्प्रदायिक हैं। क्या अठहत्तर में जनता ने संविधान में बिसमिल्लाह देने के लिए आन्दोलन किया था, जो जियाउर रहमान की सरकार ने बिसमिल्लाह को बैठा दिया? 1988 में क्या जनता इस्लाम को राष्ट्रधर्म बनाने के लिए रो रही थी, जो इरशाद सरकार ने इस्लाम को राष्ट्रधर्म बना दिया? क्यों किया ऐसा? सेक्यूलरिज्म में क्या तो बंगालियों का अगाध विश्वास है, विशेषकर मुक्तियुद्ध की समर्थक शक्तियों का!

पर वे तो राष्ट्रीय ढाँचे में साम्प्रदायिकता के विषवृक्ष रोपण देखकर भी उतना क्षुब्ध नहीं हुए। क्षुब्ध होने पर क्या नहीं होता? जिस देश के गर्म खून वाले व्यक्ति इतना बड़ा युद्ध कर सकते हैं, उस देश के व्यक्ति आज साँप की तरह शीतल क्यों हैं? क्यों वे साम्प्रदायिकता के पौधे को समूल उखाड़ फेंकने की जरूरत अनुभव नहीं कर रहे हैं? क्यों वे ऐसी एक असम्भव बात को सोचने का साहस जुटा पा रहे हैं कि धर्म निरपेक्षता के वगैर भी गणतंत्र आएगा या आ रहा है? ऐसा सोचना तो उन्हीं व्यक्तियों का है न, जो स्वतंत्रता के पक्ष की शक्ति थे? प्रगतिशील आन्दोलन से जुड़े थे!

'सुनने में आया है कि कल मुसलमानों ने सोयारीघाटा का मंदिर और श्यामपुर का मंदिर तोड़ डाला है?' किरणमयी कातर कंठ में बोली। सुरंजन ने अंगड़ाई ली। बोला, 'क्या तुम कभी मंदिर जाती थीं, जो मंदिर टूटने पर तुम्हें दुःख हो रहा है? तोड़ने दो न, हानि क्या है? धूल में मिल जाएँ ये सब धर्म की इमारतें।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book