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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


दूसरे दिन सचमुच सुधामय गाय का मांस खरीद कर ले आये। किरणमयी ने उसे पकाया भी था। आसानी से पकाना थोड़े ही चाहती थी। आधी रात तक सुधामय ने उसे समझाया था कि इन कुरीतियों का कोई मतलब नहीं होता। अनेक बड़े-बड़े मनीषी भी ये संस्कार नहीं मानते। इसके अलावा तुम जो भी कहो, है वह मांस बड़ा स्वादिष्ट। इसे 'फ्राई' भी कर सकती हो, धीरे-धीरे सुरंजन के भीतर से बचपन की वह शर्म, डर, क्षोभ चला गया था। उस परिवार के शिक्षक थे सुधामय। सुरंजन को लगता था कि उसके पिता अतिमानव जैसा कुछ होंगे। इतनी सतता, इतनी सरलता, इतना स्वस्थ चिंतन, गंभीर भावना और प्यार, इतनी असाम्प्रदायिकता को ढोकर आजकल कोई जिन्दा नहीं रहता।

सुरंजन पत्रिका को हाथ भी नहीं लगता। धीरे से सुधामय के कमरे से निकल जाता है। उसका मन नहीं होता कि वह पत्रिका पर झुका रहे। साम्प्रदायिक दंगे के विरुद्ध लिखा बुद्धिजीवियों का लेख पढ़े, शान्ति जुलूस की तस्वीरें देखे। इससे उसके दिल में आस्था-विश्वास की सुन्दर हवा बहेगी, यह सुरंजन को कतई पसंद नहीं। इसके बदले वह बिल्ली को ढूँढ़ता रहा-जातिहीन एक बिल्ली! बिल्ली की तो कोई जाति नहीं, सम्प्रदाय नहीं। काश, वह भी एक बिल्ली बन पाता!

कितने दिनों बाद सुधामय कैम्प से लौटे थे, सात दिनों बाद? या छह दिनों बाद? उनको बहुत प्यास लगी थी। इतनी प्यास कि बंधे हाथ-पाँव बंधी आँख के बावजूद लुढ़क रहे थे, ताकि शायद लुढ़कते हुए किसी घड़े से जा टकरायें। लेकिन कैम्प में घड़ा कहाँ मिलेगा! सामने से होकर ब्रह्मपुत्र बह रही है, इसलिए घड़े में कोई पानी नहीं रखा गया। सुधामय की जीभ सूखकर लकड़ी हुई जाती थी। जब वे 'पानी-पानी'

कहकर कराहते थे, तव सैनिक अजीब तरह की आवाज करते हुए हँसते थे। एक दिन उन लोगों ने पानी अवश्य दिया था। सुधामय की आँखों की पट्टी खोलकर उसे दिखा-दिखाकर दो सैनिकों ने एक लोटे में पेशाब किया था। उस लोटे का पेशाब जब सुधामय की आँखों में डालना चाहा तो सुधामय ने घृणा से मुँह फेर लिया था। लेकिन एक सैनिक ने उनका मुँह जबरदस्ती खोले रखा और दूसरे ने वह पेशाब उनके मुँह में डाल दिया। उसे देखकर कैम्प के अन्य सैनिकों ने अट्टहास किया। नमकीन गरम पानी धीरे-धीरे उनके गले से उतर रहा था और वे प्रकृति से अपने लिए विप माँग रहे थे। उन लोगों ने उन्हें सिलिंग से टाँग कर पीटा था। वे पीटते-पीटते उन्हें मुसलमान होने को कह रहे थे। एलेक्स हैली के रूट्स में काले लड़के कुंटा-किन्टे को जिस तरह अपना नाम 'टोबी' कहने के लिए लोगों ने उसकी पीठ पर चाबुक मारा था और वह बार-बार यही कहता रहा कि उसका नाम कुंटा-किन्टे है, उसी प्रकार जब सुधामय ने किसी भी तरह मुसलमान नहीं होना चाहा तो उन लोगों ने कहा-जब तुम खुद मुसलमान बनोगे ही नहीं, तो ये लो, तुम्हें हम ही मुसलमान बना देते हैं। यह कहकर एक दिन उनकी लुंगी उठाकर उन्होंने खच से उनका पुरुषांग काट लिया और जिस तरह पेशाब पिलाने के दिन हँसे थे, उसी तरह उस दिन भी अद्भुत स्वर में हँसे। सम्भवतः उस समय सुधामय अपनी चेतना खो बैठे थे। वहाँ से जिन्दा लौटेंगे, यह उन्होंने सोचा ही नहीं था। अन्य जो भी हिन्दू उनकी आँखों के सामने बँधे थे, वे कलमा पढ़कर मुसलमान बनने के लिए राजी होकर भी जिन्दा नहीं रहे। सुधामय को जड़ से मुसलमान बना दिये जाने के कारणवश शायद उन लोगों ने उन्हें जिन्दा रखा। उस तरह से जिन्दा रहने के बाद उनकी नालिताबाड़ी जाने की योजना धरी रह गयी।

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