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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


डाकबंगला के सामने वाली नाली के पास पड़े शरीर में जब चेतना आयी तब उन्होंने पाया कि उनके शरीर से खून बह रहा है लेकिन वे जिन्दा हैं। टूटे पैर और पसलियों वाले शरीर से वे किस तरह ब्रह्मपल्ली के मकान में लौटे थे, सोचने पर आज भी उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सम्भवतः उनके अन्दर की शक्ति ही उन्हें अब तक अटल रखे है। उस दिन घर जाकर वे किरणमयी के पास मुँह के बल गिरे थे। उन्हें उस हालत में देखकर किरणमयी थर-थर काँप रही थी। किरणमयी उन्हें साथ लेकर, घर-द्वार छोड़कर फेरी से ब्रह्मपुर के पार ले गयी। साथ में दो निर्वोध शिशु थे, जो रह-रहकर रो रहे थे। किरणमयी उस दिन रो नहीं पायी थी। सारे आँसू उसकी छाती में जमे हुए थे। फैजुल की माँ अक्सर उससे कहती, 'मौलवी बुलाती हूँ। कलमा पढ़कर मुसलमान हो जाइए। माया के पिताजी को समझाइये।' किरणमयी तब भी नहीं रोयी। वह अपनी गोपन वेदना अपने में ही समेटे रही। घर के सभी जब सो जाते थे तब अपने आँचल से कपड़ा फाड़कर सुधामय के घाव पर पट्टी बाँधती थी। तब भी वह नहीं रोयी। वह तब रोयी थी, जब सारे गाँव ने 'जय बांग्ला' होने की खुशी मनाई थी। तब पड़ोसियों की परवाह न करते हुए सुधामय की छाती पर गिर कर अपने सारे जमे आँसुओं को निकालते हुए बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोयी थी।

अभी भी किरणमयी की तरफ देखने पर सुधामय को लग रहा है कि उसके अन्दर इकहत्तर की तरह आँसू जमा हैं। अचानक एक दिन वह अपना सारा आँसू निकालेगी, अचानक एक दिन उसकी दुस्सह स्तब्धता दूर होगी। उसके अन्दर काले बादल की तरह दुःख जमा हुआ है। एक दिन बारिश बनकर सव बाहर आयेगा। कव 'जय बांग्ला' की तरह स्वाधीनता का समाचार उनके कानों में आयेगा। कव उनके पास सुहाग का शंखा और सिंदूर पहनने की खबर आयेगी, धोती पहनने की खुली छूट मिलेगी, कब बीतेगी इकहत्तर की तरह साँस रोकने वाली लम्वी काली रात? सुधामय ने पाया कि अब उनके पास कोई रोगी भी नहीं आता। बारिश-तूफान के दिनों में भी तो कम-से-कम सात रोगी आ ही जाया करते थे। सुधामय को सारा दिन घर पर बैठे रहना अच्छा नहीं लगता। थोड़ी देर के अन्तराल में एक-एक जुलूस जा रहा है-'नारा-ए-तकबीर अल्लाहो-अकबर! हिन्दू यदि जीना चाहो इस देश को छोड़कर चले जाओ।' किसी भी समय कट्टरपंथियों द्वारा घर पर बम फेंका जा सकता है, आग लगा दी जा सकती है, घर को लूटा जा सकता है, घर का कोई भी व्यक्ति कत्ल किया जा सकता है। क्या हिन्दू देश छोड़कर चले जा रहे हैं? सुधामय जानते हैं कि नब्बे के बाद काफी हिन्दू देश छोड़कर चले गये हैं।

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