जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
नयी जनगणना में हिन्दू मुसलमानों की अलग-अलग गणना नहीं हुई है। अगर हुई होती तो पता चलता कि कितने हिन्दू देश छोड़कर गये हैं। किताबों की ताक में धूल जम गयी है। सुधामय ने फूंक कर धूल साफ की। इससे भला धूल साफ होती है? अपने कुर्ते से धूल साफ करते हुए उनकी नजर, बांग्ला देश सरकार के जनगणना ब्यूरो द्वारा जारी ‘गणना वर्ष ग्रन्थ' पर पड़ी, 1986 का ग्रन्थ है। 1974 एवं 1987 का हिसाव इसमें है। 1974 में पार्वत्य चट्टग्राम की कुल जनसंख्या 5 लाख 80 हजार थी, 1974 में जहाँ मुसलमानों की संख्या 96 हजार थी, वहीं 1981 में बढ़कर एक लाख 88 हजार हो गयी, जबकि 1974 में हिन्दुओं की संख्या थी 53 हजार, जो 1981 में बढ़कर 66 हजार हुई। यानी मुसलमानों की वृद्धि का अनुपात 95.83% और हिन्दुओं का 24.53% था। कुमिल्ला में 1974 में मुसलमानों की संख्या थी 52 लाख 50 हजार, जो 1981 में 63 लाख हो गयी और हिन्दुओं की संख्या थी 5 लाख 64 हजार, जो 1981 में बढ़कर 5 लाख 65 हजार हुई। मुसलमानों में वृद्धि का अनुपात 20.13% जवकि हिन्दुओं का महज 0.18% | फरीदपुर की जनसंख्या 1974 से 1981 के दौरान बढ़कर 17.34% हुई है। जिसमें मुसलमानों की संख्या 31 लाख से बढ़कर 1981 में 38 लाख 52 हजार हो गयी। उनकी वृद्धि की दर 24.26% है। जबकि हिन्दुओं की संख्या 1974 में 9 लाख 44 हजार थी और 1989 में 8 लाख 94 हजार रह गई। पावना जिले की जनसंख्या में 1974 से 1981 के दौरान 21.63% की वृद्धि हुई है। 1974 में 25 लाख 46 हजार मुसलमान थे। 1981 में बढ़कर यह 31 लाख 67 हजार हुई। वृद्धि का अनुपात 24.39% रहा। इधर हिन्दुओं की संख्या थी 2 लाख 60 हजार, जो 1981 में 2 लाख 51 हजार रह गयी। राजशाही जिले की जनसंख्या वृद्धि का अनुपात 23.78% है। मुसलमानों में वृद्धि हुई है 27.20%। वहीं 1974 में हिन्दू थे 5 लाख 58 हजार, जो 1981 में 5 लाख 3 हजार रह गए। जनगणना पुस्तक के पृष्ठ संख्या 122 में सुधामय ने पाया के एक हिसाब लिखा हुआ है : वर्ष 1974 में कुल जनसंख्या का साढ़े तेरह फीसदी हिन्दू थे। 1981 में कुल जनसंख्या का 12.1 फीसदी हिन्दू थे। तो फिर वाकी हिन्दू कहाँ गये?
सुधामय ने कुर्ते की बाँह से चश्मे के काँच साफ किये। तो क्या वे चले जा रहे हैं? क्यों जा रहे हैं? क्या चले जाने में ही उनकी मुक्ति है? क्या उचित नहीं था कि वे देश में रहकर लड़ें। फिर से सुधामय को भागे हुए हिन्दुओं को 'कावार्ड' कहकर गाली देने की इच्छा हुई।
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