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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। जनगणना पुस्तक को हाथ में लेने के बाद से वे अपने दाहिने हाथ को थोड़ा कमजोर पा रहे हैं। किताब को ताक में रखते हुए उन्होंने पाया कि पहले की तरह उनके हाथ में वह ताकत नहीं है। उन्होंने किरणमयी को बुलाया। तव भी उन्हें लगा कि उनकी जीभ थोड़ी भारी लग रही है। नीले चीते की तरह एक आशंका उनके द्वार पर आकर खड़ी हो गई। बड़ा ही जिद्दी चीता है वह। चलते हुए उन्होंने पाया कि उनके दाहिने पैर में भी पहले की तरह बल नहीं रहा। पुकार उठे, 'किरण! ओ किरण!'

किरणमयी ने चूल्हे पर दाल चढ़ायी है। चुपचाप सामने आकर खड़ी हो गयी। सुधामय ने अपना दाहिना हाथ उसकी ओर बढ़ाना चाहा लेकिन उनका हाथ लुढ़क कर गिर गया-'किरण, मुझे विस्तर पर लिटा दो, न!'

किरणमयी भी कुछ समझ नहीं पायी कि क्या हुआ। ये इस तरह क्यों काँप रहे हैं। इनकी आवाज भी क्यों अस्पष्ट होती जा रही है। वह सुधामय को सोने के कमरे में लिटा देती है।- 'क्या हुआ है तुम्हें?'

'सुरंजन कहाँ है?' 'अभी-अभी तो निकल गया। मैंने मना किया, सुना नहीं।' 'किरण मुझे ठीक नहीं लग रहा। कुछ करो।' 'तुम्हारी आवाज क्यों अटक रही है? क्या हुआ है?'

'दाहिने हाथ में कोई शक्ति नहीं है। दाहिने पैर में भी नहीं। तो क्या किरणमयी मुझे 'पैरालाइसिस' हो रहा है?'

किरणमयी लपक कर सुधामय की दोनों बांहें पकड़ लेती है-'नहीं, भगवान के लिए ऐसा मत कहो! कमजोरी के कारण ऐसा हो रहा है। रात भर नींद नहीं आयी है शायद इसीलिए। खाना-पीना भी तो ठीक से नहीं करते!'

सुधामय छटपटाते हैं। उनके सारे बदन में बेचैनी हो रही है। उन्होंने कहा, 'देखो तो किरण, मैं मर रहा हूँ कि नहीं। मुझे ऐसा क्यो लग रहा है?'

'किसे बुलाऊँ? हरिदेव बाबू को एक बार बुलाऊँ?'

सुधामय ने अपने बायें हाथ से किरणमयी के हाथ को जोर से पकड़ा-'कहीं मत जाओ, मेरे सामने से मत उठो, किरण! माया कहाँ है?'

'वह तो उसी समय जो पारुल के घर गई है, फिर नहीं लौटी।'

'मेरा बेटा कहाँ है किरण, मेरा बेटा?'

'क्या पागलों-सी बातें कर रहे हो!'

'किरण, दरवाजा-खिड़की खोल दो!'

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