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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'दरवाजा-खिड़की क्यों खोलूँ?'

'मुझे थोड़ी रोशनी चाहिए। हवा चाहिए।'

'हरिपद बाबू को बुला लाती हूँ। तुम चुपचाप सोये रहो।'

'वे हिन्दू अपना-अपना घर छोड़कर भाग गये हैं। उनके यहाँ जाकर तुम्हें कोई नहीं मिलेगा। माया को बुलाओ!

'किससे खबर भिजवाऊँ बोलो! कोई भी तो नहीं है।'

'तुम एक इंच भी मत हिलो, किरण! सुरंजन को बुलाओ।'
इसके बाद सुधामय धीरे-धीरे बड़बड़ाते हुए कुछ बोले, वह समझ में नहीं आया। किरणमयी डर से काँप गयी। क्या वह चिल्लाकर मुहल्ले के लोगों को बुलाये? लम्बे समय से पास-पास रहने वाले किसी पड़ोसी को? अचानक चुप हो गये। पड़ोसी कौन है, जो आयेगा? हैदर, गौतम या शफीक साहब के घर में कोई! किरणमयी बड़ा असहाय महसूस कर रही है। दाल के जलने की महक सारे घर में फैल गयी है।

आज भी सुरंजन किधर जायेगा, कोई ठीक नहीं। एक बार मन में आया कि वेलाल के घर जाये। काकराइल पार होकर दाहिनी ओर देखा, 'जलखाबार' नामक दुकान टूटी हुई है। दुकान की टेबुल-कुर्सियों को रास्ते में लाकर जला दिया गया है, जिसकी राख जमी हुई है। जब तक देखा जा सका, सुरंजन देखता रहा। चमेलीबाग में पुलक का भी घर है। सुरंजन अचानक अपना इरादा बदल देता है। वह पुलक के घर जाने का निर्णय लेता है। रिक्शे को बायीं ओर की गली में चलने को कहता है। पुलक भाड़े पर एक फ्लैट लेकर रहता है। एन. जी. ओ. में नौकरी करता है। बहुत दिनों से उसके साथ मुलाकात नहीं हुई। वह अक्सर बेलाल के घर अड्डा मारने आता है, जो पुलक के मकान के सामने ही है। लेकिन कॉलेज के दोस्त पुलक से मिलने की उसे फुर्सत ही नहीं होती।

'कालिंग बेल' बजाया। भीतर से कोई आवाज नहीं आयी। सुरंजन लगातार 'बेल' बजाता रहा। अन्दर से धीमी आवाज आती है, 'कौन?'

'मैं, सुरंजन!'

'कौन सुरंजन?'

'सुरंजन दत्त!'

अन्दर से ताला खोलने की आवाज आई। पुलक ने खुद ही दरवाजा खोला।  दबी आवाज में बोला, 'अन्दर आ जाओ!'

'क्या बात है, इतने प्रोटेक्शन का इन्तजाम क्यों? 'डोर ब्लू' लगा सकते हो!'

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