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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


पुलक ने फिर दरवाजे में ताला लगा दिया। उसे खींचकर देखा कि ठीक से बन्द हुआ या नहीं। सुरंजन यह देखकर काफी हैरान हुआ। पुलक ने फिर दबी हुई आवाज में पूछा, 'तुम बाहर निकले हो। क्यों?'

'जान-बूझकर!'

'मतलब? डर-भय नहीं है क्या? साहस दिखाकर जान गँवाना चाहते हो तुम? या फिर एडवेंचर में निकले हो?'

निश्चित होकर सोफे पर बैठते हुए सुरंजन ने कहा, 'जो सोचो, वही!'

पुलक की आँखों की पुतलियों में आशंका काँप रही थी। वह भी सोफे पर उसके बगल में बैठ गया।

लम्बी साँस छोड़ी। बोला, 'सब कुछ पता है?'

'नहीं!'

'भोला की तो बहुत बुरी स्थिति है। तजमुद्दीन, बुरहानुद्दीन थाने के गोलकपुर, छोटा डाउरी, शम्भुपुर, दासेर हाट, खासेर हाट, दरिरामपुर, पद्मामन और मणिराम गाँव के दस हजार परिवारों के करीब पचास हजार हिन्दुओं का सब कुछ लुट गया। उनको लूटकर बचे हुए सामान में आग लगाकर सब कुछ खत्म कर दिया। पचास करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। दो व्यक्ति मारे गये हैं और दो सौ से अधिक घायल हुए हैं। लोगों को पहनने के लिए कपड़ा नहीं है, खाने को अन्न नहीं है। एक भी घर नहीं बचा जिसमें आग न लगायी गयी हो। सैकड़ों दुकानें लूटी गयीं। दासेर हाट बाजार की एक भी हिन्दू-दुकान नहीं बची। बेघर लोग इस प्रचण्ड ठण्ड में खुले आकाश के नीचे दिन बिता रहे हैं। शहर के मदनमोहन ठाकुरबाड़ी, मन्दिर, लक्ष्मीगोविन्द ठाकुरबाड़ी, उसका मन्दिर, महाप्रभु अखाड़ा को भी लूटकर आग लगा दी। बुरहानुद्दीन, दौलतखान, चरफैशन, तजमुद्दीन व लालमोहन थाने के किसी भी मन्दिर, किसी भी अखाड़े का कोई अस्तित्व नहीं है। सभी घरों में लूट हुई है, आग लगाई गयी है। धुइन्या हाट इलाके में करीब दो मील तक स्थित हिन्दुओं के घरों को आग लगा दी गयी है। दौलतखान थाने के बड़े अखाड़ा में सात तारीख की रात को आग लगा दी गयी। बुरहानुद्दीन बाजार का अखाड़ा तोड़कर उसमें आग लगा दी गयी। कुतुबा गाँव के पचास घरों को राख कर दिया गया है। चरफैशन थाने के हिन्दुओं के घरों को लूटा गया है। अरविन्द दे नामक एक व्यक्ति को चाकू भी मारा गया है।'

'नीला कहाँ है?'

सुरंजन ने सोफे पर आराम से बैठकर आँखें बन्द कर लीं। उसने सोचा आज वह बेलाल के घर न जाकर पुलक के घर क्यों आया। तो क्या वह अन्दर-ही-अन्दर कम्युनल हो गया है, या फिर परिस्थिति ने उसे कम्युनल बना दिया है।

'जिन्दा हूँ! इतना कह सकता हूँ।'

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