जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
'टीवी में देखने को क्या है?'
'विज्ञापन देखता हूँ। सनलाइट बैटरी, जिया सिल्क साड़ी, टूथपेस्ट का। विज्ञापन। हामद, नात देखता हूँ। कुरान की वाणी देखता हूँ।'
सुरंजन हँसने लगता है। कहता है, 'सारा दिन इसी तरह से कटता है? बाहर तो निकले नहीं होंगे?'
'मेरे घर में चार वर्ष का एक मुसलमान लड़का रहता है। उसी के भरोसे तो जिन्दा हूँ। कल असीम के घर गया था। वह लड़का आगे-आगे और मैं उसके पीछे-पीछे!'
सुरंजन फिर हँसा। बोला, 'लेकिन अभी-अभी तो बिना देखे ही दरवाजा खोल दिये! यदि दूसरा कोई होता तो?' गुण हँसते हुए बोले, 'कल रात के दो बजे फुटपाथ पर खड़े कुछ लड़के जुलूस निकालने की योजना बना रहे थे और चर्चा कर रहे थे कि हिन्दुओं को गाली देते हुए क्या-क्या नारे लगाये जा सकते हैं, तभी मैंने दहाड़ा, 'कौन है वहाँ पर! भागते हो कि नहीं?' इतने से ही वे हट गये। मेरी दाढ़ी और बाल देखकर तो अधिकतर लोग मुझे मुसलमान ही समझते हैं, वह भी मौलवी।'
'कविताएं नहीं लिखते?'
'नहीं। वह सब लिखकर क्या होगा! सब कुछ छोड़ दिया है।'
'सुना है, रात में आजिमपुर बाजार में जुआ खेलते हैं?'
'हाँ, समय काटता हूँ! लेकिन कई दिनों से वहाँ भी नहीं जा रहा।'
'क्यों?'
‘मारे डर के बिस्तर से ही नहीं उतरता। लगता है उतरते ही ये लोग पकड़ लेंगे।'
'क्या टीवी कुछ कह रहा है, मंदिरों का टूटना दिखा रहा है?'
'अरे नहीं! टीवी देखने से तो लगता है यह देश साम्प्रदायिक सद्भावना का देश है। इस देश में दंगा वगैरह कुछ नहीं हो रहा है, जो कुछ भी हो रहा है वह भारत में ही हो रहा है।'
'उस दिन एक आदमी ने कहा, भारत में अब तक चार हजार दंगे-फसाद हुए हैं। फिर भी भारत के मुसलमान देश नहीं छोड़ रहे। लेकिन यहाँ के हिन्दुओं का एक पैर बांग्लादेश में रहता है तो दूसरा भारत में। यानी भारत के मुसलमान लोग जूझ रहे हैं और यहाँ के हिन्दू भाग रहे हैं।'
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