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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


सुरंजन खड़ा हो जाता है। उसे अपने भीतर का दुःखबोध बढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा है। क्या दुःख संक्रामक होता है? वह चलते हुए टिकाटुली की तरफ जाने लगता है। नहीं, अब रिक्शा नहीं लूँगा। जेब में सिर्फ पाँच रुपये ही हैं। पलाशी के मोड़ से सिगरेट खरीदता है। 'बांग्ला फाइव' माँगने पर दुकानदार सुरंजन के चेहरे की तरफ हैरान होकर देखता है। उसे इस तरह से देखता हुआ देखकर छाती में फिर से धुकधुकी होने लगती है। क्या यह आदमी जान गया है कि वह हिन्दू का लड़का है। क्या यह आदमी जानता है कि बाबरी मस्जिद टूट गयी है इसलिए किसी भी हिन्दू को इच्छा होने पर पीटा जा सकता है? सुरंजन सिगरेट खरीद कर तेजी से चल देता है। उसे लग रहा है, क्यों नहीं वह दुकान पर ही सिगरेट सुलगाकर चला आया! क्या इसलिए की आग माँगने पर वह समझ जाता कि वह हिन्दू है? हिन्दू-मुसलमान का परिचय तो किसी व्यक्ति के माथे पर नहीं लिखा होता! फिर भी उसे लगा कि उसके चलने में, उसकी भाषा में, आँखों की दृष्टि में शायद पकड़ में आने लायक कुछ है। टिकाटुली के मोड़ पर आते ही एक कुत्ता भौंकने लगा। वह चौंक गया। अचानक पीछे से एक झुंड लड़कों की 'पकड़ो-पकड़ो' की आवाज सुनाई पड़ी। यह सुनकर वह फिर पीछे नहीं मुड़ा। बेतहाशा भागता रहा, उसका शरीर पसीना-पसीना हो रहा था। कमीज की बटन खुल गई, फिर भी दौड़ता रहा। काफी दूर तक दौड़ने के बाद पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। तो क्या वह व्यर्थ ही दौड़ता रहा। वह आवाज उसके लिए नहीं थी? या फिर वह उसका ‘आडिटर हैलुशिनेशन' है।

अधिक रात हो जाने पर वह बाहर से किसी को आवाज न देकर चुपचाप अपने कमरे को जिसे वाहर से ताला लगाकर गया था, खोलकर अन्दर घुस जाता है। अन्दर घुसते ही बगल के कमरे से वह 'भगवान-भगवान' कहकर रोने की एक करुण आवाज सुनता है। एक बार तो सोचता है कि उसके घर कोई हिन्दू अतिथि या रिश्तेदार तो नहीं आया। हो भी सकता है! यह सोचकर जब वह सुधामय के कमरे में जाने लगा तो देखकर हैरान रह गया कि किरणमयी कमरे के एक कोने में छोटे से आसन पर मिट्टी की एक प्रतिमा रखे बैठी हुई है। मूर्ति के सामने गले में आँचल डालकर घुटना टेककर बैठी हुई 'भगवान-भगवान' कहती रो रही है। यह दृश्य इस घर में नहीं दिखता। अद्भुत अपरिचित यह दृश्य सुरंजन को चकित कर गया। कुछ समय तक तो वह समझ ही नहीं पाया कि उसे क्या करना चाहिए। क्या वह उस मूर्ति को पटक कर तोड़ दे, या फिर किरणमयी के नतमस्तक को अपने हाथों से पकड़कर सीधा कर दे। इस तरह नतमस्तक देखना उसे बिलकुल नापसंद है।

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