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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


घर जाने से पहले वह गौतम के घर गया। गौतम सोया हुआ था। वह पहले से ठीक है। वह बहुत ही सीधा-सादा लड़का है, मेडिकल में पढ़ता है, राजनीति नहीं करता। मुहल्ले में कोई दुश्मन नहीं है, और उसे ही मार खानी पड़ी। बाबरी मस्जिद क्यों तोड़ी गयी, इस अपराध में।

गौतम की माँ बगल में ही बैठी हुई थी। कोई न सुन पाये, ऐसी सावधानी बरतते हुए बोली, 'बेटा, हम लोग तो चले जा रहे हैं।'

'चले जा रहे हैं?' सुरंजन चौंक गया।

'हाँ, घर बेचने का इन्तजाम कर रहे हैं।'

वे लोग कहाँ जा रहे हैं, सुरंजन को यह जानने की इच्छा नहीं होती है। वह पूछता भी नहीं है। क्या वे लोग देश छोड़कर चले जायेंगे? वहाँ बैठे रहने पर यह भयंकर खबर सुरंजन को सुननी पड़ेगी, इसलिए वह अचानक कुर्सी छोड़कर खड़ा हो जाता है। कहता है, चलूँ। गौतम की माँ ने कहा, 'बैठो बेटा, जाने से पहले पता नहीं फिर मिल पाऊँ या नहीं। बैठो दो बातें कर लूँ।' उनके गले में रुलाई जमी हुई थी।

'नहीं मौसी जी, घर पर काम है, जाता हूँ। दूसरे दिन आऊँगा।'

सुरंजन दुबारा न गौतम की तरफ देखता है और न ही उसकी माँ की तरफ। आँखें झुकाये चला जाता है। वह एक लम्बे निःश्वास को छिपा लेना चाहता है, लेकिन नहीं छिपा पाता। विरुपाक्ष, सुरंजन की पार्टी का लड़का है। नया-नया शामिल हुआ है। बहुत मेधावी लड़का है। सुरंजन तब तक बिस्तर से नहीं उठा था, विरुपाक्ष अन्दर आया।

'दस बज रहे हैं, अभी भी सो रहे हैं?' 'सोया कहाँ हूँ, लेटा हूँ बस! जब कुछ भी करने को नहीं रहता, तब सोया
ही रहना पड़ता है। हमारा तो मस्जिद तोड़ने का साहस नहीं है। इसीलिए सोया ही रहना पड़ेगा।'

'ठीक ही कहा है आपने! वे लोग सौ-सौ मंदिर तोड़ रहे हैं और हम लोग यदि किसी मस्जिद पर एक पत्थर भी फेंके तो क्या होगा! चार सौ साल पुरानी रमना कालीबाड़ी को पाकिस्तानियों ने धूल में मिला दिया, किसी भी सरकार ने तो नहीं कहा कि उसे फिर से बनवा देंगे।

'हसीना बार-बार बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण की बात कह रही है। बांग्लादेश के हिन्दुओं को क्षतिपूर्ति देने की बात तो उसने कही है लेकिन टूटे हुए मंदिरों के पुनर्निर्माण की बात एक बार भी नहीं कही। बांग्लादेश के हिन्दू बाढ़ के पानी में बहकर नहीं आये हैं। वे इस देश के नागरिक हैं। उनके जीने का अधिकार, अपने जीवन, सम्पत्ति, उपासना-स्थल की रक्षा करने का अधिकार किसी से कम नहीं है।'

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