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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2216
आईएसबीएन :81-85341-13-3

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


(40)
झंझा-झकोर पर चढ़ी, मस्त झूलो रे !
वृन्तों पर बन पावक-प्रसून फूलो रे !
दायें-बायें का द्वन्द्व आज भूलो रे !
सामने पड़े जो शत्रु, शूल हूलों रे !
वृक हो कि व्याल, जो भी विरुद्ध आयेगा,
भारत से जीवित लौट नहीं पायेगा।

(41)
निर्जर पिनाक हर का टंकार उठा है,
हिमवन्त हाथ में ले अंगार उठा है,
ताण्डवी तेज फिर से हुंकार उठा है,
लोहित में था जो गिरा, कुठार उठा है।
संसार धर्म की नयी आग देखेगा,
मानव का करतब पुनः नाग देखेगा।

(42)
माँगो, माँगो वरदान धाम चारों से,
मन्दिर, मस्जिदों, गिरजों, गुरुद्वारों से।
जय कहो वीर विक्रम की, शिवा बली की,
उस धर्मखड्ग, ईश्वर के सिंह, अली की।
जब मिले काल, ‘जय महाकाल!’ बोलो रे !
सत् श्री अकाल ! सत् श्री अकाल ! बोलो रे !
[7-1-63]

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