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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2216
आईएसबीएन :81-85341-13-3

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...

जवानियाँ


नये सुरों में शिंजिनी बजा रही जवानियाँ,
लहू में तैर-तैर के नहा रहीं जवानियाँ।

(1)
प्रभात-श्रृंग से घड़े सुवर्ण के उँड़ेलती,
रँगी हुई घटा में भानु को उछाल खेलती,
तुषार-जाल में सहस्र हेम-दीप बालती,
समुद्र की तरंग में हिरण्य-धूलि डालती ;
सुनील चीर को सुवर्ण-बीच बोरती हुई,
धरा के ताल-ताल में उसे निचोड़ती हुई;
उषा के हाथ की विभा लुटा रही जवानियाँ।

(2)
घनों के पार बैठ तार बीन के चढ़ा रहीं,
समुन्द्र नाद में मलार विश्व को सुना रहीं ;
अभी कढ़ी लटें निचोड़ता, जमीन सींचतीं,
अभी बढ़ी घटा में क्रुद्ध काल-खड्ग खींचतीं ;
पड़ीं व’ टूट देख लो, अजस्र वारिधार में,
चलीं व’ बाढ़ बन, नहीं समा सकीं कगार में।
रुकावटों को तोड़-फोड़ छा रही जवानियाँ।

(3)
हटो तमीचरों, कि हो चुकी समाप्त रात है,
कुहेलिका के पार जगमगा रहा प्रभात है।
लपेट में समेटता रुकावटों को तोड़ के,
प्रकाश का प्रवाह आ रहा दिगन्त फोड़ के।
विशीर्ण डालियाँ महीरुहों की फूटने लगीं ;
शमा की झालरें व’ टक्करों से फूटने लगीं।
चढ़ी हुई प्रभंजनों पे आ रही जवानियाँ।

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