कविता संग्रह >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
आज कसौटी पर गाँधी की आग है
(1)
अब भी पशु मत बनो,
कहा है वीर जवाहरलाल ने।
अन्धकार की दबी रौशनी की धीमी ललकार ;
कठिन घड़ी में भी भारत के मन की धीर पुकार।
सुनती हो नीगिनी ! समझती हो इस स्वर को?
देखा है क्या कहीं और भू पर उस नर को-
जिसे न चढ़ा जहर,
न तो उन्माद कभी आता है ;
समर- भूमि में भी जो
पशु होने से घबराता है?
(2)
अब भी पशु मत बनो,
कहा है वीर जवाहरलाल ने।
ऊँचाई की बात, किन्तु, कुछ चिन्ता भी है।
क्या मनुष्य मानव होकर लड़ने जाता है?
क्रूर दानवों के दुर्दान्त समूह ने,
वूकों, हिंस्र पशुओं, बाघों के व्यूह ने-
घेर लिया है जिसे, अगर वह नर पशुओं पर,
तुलसी की कण्ठी छू-छू, रो-रो कर वार करेगा,
पशु की होगी विजय, पराजय मानवता की
और, अन्त में, द्विधाग्रस्त मानव भी स्वयं मरेगा।
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