कविता संग्रह >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
जहाँ शस्त्रबल नहीं,
शास्त्र पछताते या रोते हैं।
ऋषियों को भी सिद्धि
तभी तप से मिलती है,
जब पहरे पर स्वयं
धनुर्धर राम खड़े होते हैं।
पापी कोई और, चित्त क्यों म्लान करें हम?
भारत में जो निधि मनुष्यता की संचित है,
क्यों पशुत्व-भय से उसका बलिदान करें हम?
किसे लीलने को आयी यह लाल लपट है?
गाँधी पर यदि नहीं, और किस पर संकट है?
सकुच गये यदि हम अहिंस्र
हिंसा के हाहाकार से,
कौन बचा पायेगा
गाँधी को पशुओं की मार से?
समय पूछता है, ज्वाला है कहाँ अभय की?
कहाँ सत्य का वज्र, लौहमय रीढ़ विनय की?
कहाँ सिन्धु का अनल,
अधर पर जिसके इतना झाग है?
आज अहिंसा नहीं,
कसौटी पर गाँधी की आग है।
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