| 
			 नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
  | 
        
		  
		  
		  
          
			 
			 326 पाठक हैं  | 
     |||||||
आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
 लोहार : अगर बेचारे ने एक सुअर उठा भी लिया तो कौन-सा जुल्म हो गया? बीसियों सुअर पादरी के पेट के अन्दर जा चुके हैं, एक न गया तो इससे वह दुबला नहीं हो जाएगा। 
 
 कात्या : तुम लोग कैसी बातें करते हो? (सलीब का निशान बनाती है) तुम पर भी जान हुस्स का असर हो गया है। जब मिलते हो, पादरियों और गिरजे की निन्दा करते हो। 
 
 ऐमिल : इसमें जान हुस्स को क्यों घसीट लाई हो, कात्या ? 
 
 कात्या : तुम दोनों सारा वक़्त पादरियों की खिल्ली उड़ाते रहते हो। मुझे अच्छा नहीं लगता। उसने पादरी के घर चोरी क्यों की?
 
 [हानूश, लोहार और ऐमिल हँस देते हैं।] 
 
 हानूश : ग़लत भी क्या कहता है, कात्या? क्या गिरजेवालों ने बेहद दौलत इकट्ठी नहीं कर ली? क्या कोई दुनिया में ऐब है जो पादरी लोग नहीं करते? अगर वे लोग अच्छे और नेक हों तो क्योंकर उन पर कोई उँगली उठाएगा? जान हुस्स भी तो यही कहता है। 
 
 कात्या : अच्छे हैं, बुरे हैं, तुम्हें क्या? एक तरफ़ तो उनसे वज़ीफ़ा माँगते हो, दूसरी तरफ़ उन्हें बुरा-भला कहते हो। 
 
 हानूश : उनसे वज़ीफ़ा लेने में मेरा कोई अपना स्वार्थ थोड़े ही है। इस तरह के काम अकेले आदमी की तौफ़ीक के नहीं होते।
 
 लोहार : ज़माना बड़ा नाजुक जा रहा है, कात्या बी! और राजा कभी किसी का दोस्त नहीं होता। वह कभी एक की पीठ थपथपाता है तो कभी दूसरे की। वह देखेगा कि दस्तकार सिर उठाने लगे हैं तो वह सामन्तों और गिरजेवालों की पीठ थपथपाएगा। जब देखेगा कि गिरजेवाले सिर उठा रहे हैं तो दस्तकारों की पीठ थपथपा देगा। यह नीति है, कात्या बी। 
 
 यान्का : आप बड़े वक़्त पर आए हैं ऐमिल चच्चा। बापू आज से घड़ी नहीं बनाएँगे। 
 
 ऐमिल : क्यों, क्या आज कोई खास बात हुई है? (हैरान होकर) तुम रोती रही हो यान्का? 
 
 यान्का : गिरजेवालों ने वज़ीफ़ा देना बन्द कर दिया है। सुबह पादरी चाचा आए थे। उन्होंने भी कहा कि घड़ी का काम आगे नहीं बढ़ रहा है, इसे छोड़ देना चाहिए। माँ से झगड़ा भी हुआ था। 
 
 ऐमिल : (प्यार से यान्का का कन्धा थपथपाते हुए और हानूश की ओर देखते हुए) फिर? क्या अब घड़ी नहीं बनेगी? क्यों हानूश? क्या वज़ीफ़े की दरख्वास्त नामंजूर हो गई?
 
 [हानूश सिर हिलाता है।] 
 
 कात्या : क्या मालूम, गिरजेवालों को मालूम हो गया हो कि तुम लोग पादरियों की निन्दा करते रहते हो और इसलिए उन्होंने वज़ीफ़ा देने से इनकार कर दिया हो! 
 
 ऐमिल : हम पादरियों की बुराई नहीं करते। हानूश का भाई भी तो पादरी है। हम तो गिरजों में पाए जानेवाले भ्रष्टाचार की बुराई करते हैं। 
 
 कात्या : तुम्हें किसी की बुराई करने की ज़रूरत ही क्या है? तुम्हें अपने काम से मतलब होना चाहिए। वज़ीफ़ा बन्द हो गया तो तुम्हारा ही नुक़सान हुआ। और किसी का तो नहीं हुआ?
 
 [घड़ी की टिक्-टिक् फिर से सुनाई देने लगी है। हानूश फिर अपने काम में खो गया है। कात्या और ऐमिल घूमकर देखते हैं। फिर वह निराश-सा घड़ी को बन्द कर देता है और तार को ताक पर रख देता है। 
 
 बाहर क़दमों की आवाज़। कोई आदमी भाग रहा है। सहसा दरवाज़ा खुलता है। जेकब दहलीज़ पर खड़ा है। लगभग 22-23 वर्ष का युवक, फटेहाल लेकिन प्रभावशाली।]
 
 ऐमिल : कौन हो तुम? क्या बात है? यहाँ कैसे आए हो? 
 
 जेकब : क्या यहाँ पर थोड़ी देर के लिए मुझे पनाह मिल सकेगी? 
 			
						
  | 
				|||||

 
		 







			 _s.webp)

