| 
			 नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
  | 
        
		  
		  
		  
          
			 
			 326 पाठक हैं  | 
     |||||||
आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
 ऐमिल : क्यों, क्या बात है? क्या तुमने कोई जुर्म किया है? 
 
 जेकब : मैंने कोई जुर्म नहीं किया, लेकिन अधिकारी मेरा पीछा कर रहे हैं। 
 
 ऐमिल : यह क्या बात हुई? क्या तुम्हीं ने सुअर चुराया है?
 
 [हानूश मेज़ पर से आगे आ जाता है।]
 
 जेकब : मेरा नाम जेकब है। मैं काम की तलाश में हूँ। 
 
 ऐमिल : काम की तलाश में आए हो तो इतने घबराए हुए क्यों हो? पनाह क्यों माँग रहे हो? तुम्हारी साँस क्यों फूल रही है? 
 
 जेकब : मैंने पादरी के घर से सुअर उठाया था। 
 
 लोहार : उठाया था या चुराया था? 
 
 कात्या : देखा! बात निकल आई। कब चुराया था? 
 
 जेकब : तीन बरस हुए, चुराया था।
 
 ऐमिल : तीन बरस? क्या आज शाम नहीं चुराया था? 
 
 हानूश : तीन बरस पहले का जुर्म आज क्यों सुना रहे हो? 
 
 जेकब : मैं उसके लिए तीन साल तक कैदखाने में रहा हूँ। इसीलिए... 
 
 हानूश : सुअर चुराने के लिए तीन साल तक जेल में रहे हो? 
 
 जेकब : ...जी! 
 
 ऐमिल : पादरी का सुअर चुराया होगा। किसी किसान का चुराया होता तो इतनी सज़ा नहीं मिलती। क्या वह किसी पादरी का था? 
 
 जेकब : हाँ! 
 
 ऐमिल : जेल से भागकर आ रहे हो या छूटकर? 
 
 जेकब : छूटकर। ऐमिल: कब छूटे थे? 
 
 जेकब : चार दिन पहले। 
 
 ऐमिल : अगर छूटकर आए हो तो यहाँ छिपते क्यों फिरते हो? पनाह क्यों माँग रहे हो? और चार दिन पहले छूटे थे तो अपने गाँव क्यों नहीं चले गए? यहाँ क्या कर रहे हो? 
 
 जेकब : मैं यहाँ किसी काम-धन्धे की तलाश कर रहा हूँ। इसीलिए अपने गाँव नहीं गया। 
 			
						
  | 
				|||||

 
		 







			 _s.webp)

