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नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126718801

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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


महाराज : सत्रह साल! और हमें ख़बर तक नहीं हुई? घड़ी छिपकर बनाते रहे हो?

हानूश : हुजूर, जब तक कोई चीज़ बनकर तैयार नहीं हो जाए, मैं क्या दिखाऊँ? मैं इतना काम जानता था कि ख़ुद भी नहीं कह सकता था कि घड़ी कभी बनेगी या नहीं बनेगी।

महाराज : अगर अब एक और घड़ी बनाना चाहो तो क्या उस पर भी सत्रह साल लगेंगे?

हानूश : नहीं हुजूर, अब तो इसका भेद मालूम हो गया है, अब तो जल्दी बन जाएगी।

महाराज : दूसरी घड़ी कितनी देर में बनेगी-दो साल में? एक साल में?

हानूश : कुछ कह नहीं सकता, हुजूर! दो-एक साल में तो बन ही सकती है।

महाराज : क्या वह इससे बेहतर होगी?

हानूश : क्या कहूँ हुजूर, बेहतर भी हो सकती है। दूसरी बार घड़ी बनाते समय कोशिश तो यही रहती है कि पहली से बेहतर बने।

महाराज : (हाँ में सिर हिलाते हैं। नगरपालिका के अध्यक्ष से) दूसरी घड़ी बनवाओगे तो वह कहाँ पर लगेगी?

[सभी चुप हैं। जान जार्ज की ओर देखता है।]

हुसाक : जहाँ पर आप फ़रमाएँगे, हुजूर!

महाराज : इस घड़ी को लगाते समय तो तुमने हमसे नहीं पूछा। (मुस्कुराते हैं।) क्यों?

हुसाक : हुजूर, इसे आपके स्वागत के लिए यहाँ पर लगाया गया है, ताकि आप उसे मीनार पर लगा देख सकें। हुजूर के हुक्म के मुताबिक़, जहाँ हुजूर की ख्वाहिश होगी, वहाँ पर इसे लगाया जाएगा।

महाराज : नहीं-नहीं, हमने घड़ी का यहाँ पर लगाया जाना मंजूर किया। यही मुनासिब है कि घड़ी नगरपालिका पर लगे। यह जगह शहर के बीचोबीच है, कारोबार का मरकज़ है। सैकड़ों लोग दूर-दूर से यहाँ पर रोज़ आते हैं। इसका रहना भी यहीं पर मुनासिब है।

टाबर : (प्रोत्साहित होकर) हुजूर, एक इल्तज़ा है!

महाराज : कहो!

टाबर : (आगे बढ़कर) हुजूर, घड़ी लग जाने से हमारे नगर में आनेवाले यात्रियों की संख्या बहुत बढ़ जाएगी, इसलिए एक नया महसूल लगा दिया जाए तो बेहतर होगा। इससे मुल्क को बहुत फायदा होगा।

महाराज : (स्वीकृति में सिर हिलाते हैं, महामन्त्री को इशारा करते हैं) हम मानते हैं कि इस घड़ी को देखने बहुत लोग आएँगे। बल्कि जो लोग बड़े गिरजे की तीर्थयात्रा पर आते हैं, अब इस घड़ी को भी देखना चाहेंगे।

[हानूश की ओर देखकर मुस्कुराते हैं। फिर हुसाक से]

तुम्हारी तजवीज़ पर गौर किया जाएगा।

शेवचेक : (तनिक आगे बढ़कर) हुजूर का इक़बाल बुलन्द हो...

महाराज : तुम्हें कोई दरख्वास्त पेश करना है?

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