नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
दृश्य : 2
[घड़ी की मीनार। दाएँ-बाएँ की खिड़कियों में से हलका-सा प्रकाश। मीनार के अन्दर अँधेरा है। अन्दर की तरफ़ से घड़ी की मशीन की झलक मिलती है। सीढ़ियों पर क़दमों की आवाज़। मशालों की रोशनी मीनार के अन्दर पहुँचती है जिससे घड़ी के कुछेक पुर्जे नज़र आते हैं। एक अधिकारी और एक सरकारी कारिन्दे की निगरानी में हानूश को अन्दर लाया जाता है। अधिकारी और कारिन्दे के बीभत्स साए। उनके बीच एक कोने में खड़ा दुबला-पतला अन्धा हानूश।]
अधिकारी : घड़ी तुम्हारे सामने है हानूश! इसे तुम्हें ठीक करना होगा।
हानूश : तुम सचमुच समझते हो कि मैं इसे ठीक कर सकता हूँ?
अधिकारी-1 : बादशाह सलामत बहुत नाराज़ हैं, हानूश! घड़ी के कारण शहर में यात्रियों का तांता लगा रहता है। घड़ी बन्द हो जाए तो रियासत को बहुत नुक़सान है। तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा जिसके लिए सरकार ने तुम्हें तलब किया है।
हानूश : क्या तुम सचमुच समझते हो कि मैं आँखों के बिना घड़ी को ठीक कर सकता हूँ?
अधिकारी-1 : इसकी मरम्मत तो तुम्हें करनी ही है।
हानूश : मुझे घड़ी के सामने ले चलो। घड़ी की बड़ी कमानी कहाँ पर है?
अधिकारी-1 : मैं क्या जानूँ, कमानी क्या होती है! कौन-सी कमानी?
हानूश : तुम मुझे घड़ी की मशीन के ऐन सामने ले चलो। बस, इतना ही, यही बहुत बड़ी मदद होगी।
अधिकारी-1 : आओ, मेरे साथ आओ।
[सीढ़ियों पर क़दमों की आवाज़। एक और सरकारी अधिकारी का प्रवेश।]
अधिकारी-2 : जेकब का कहीं पता नहीं चल रहा। उसे ढूँढ़ने के लिए आदमी भेजे गए हैं।
अधिकारी-1 : (हानूश से) क्या तुम्हें भी मालूम नहीं कि जेकब कहाँ पर है?
हानूश : सुबह के वक़्त जेकब मेरे साथ था। बाद में वह कहीं बाहर गया होगा। मुझे बताकर नहीं गया। (हँसकर) अन्धा आदमी क्या जाने-आँखोंवाले कहाँ रहते हैं, क्या करते हैं!
अधिकारी-1 : तुम ज़रूर जानते हो, जेकब कहाँ पर है। तुम बताना नहीं चाहते, क्योंकि तुम घड़ी की मरम्मत करना नहीं चाहते। इसका नतीजा अच्छा नहीं होगा। (अधिकारी-2 से) तुम बूढ़े लोहार को ले आओ। मुझे पता चला है कि वह इसके लिए घड़ी के कल-पुर्जे बनाता रहा है। उसे पकड़ लाओ। (हानूश से) जेकब अगर लापता हो गया है तो उसकी जगह तुम जिसे चाहो बुला सकते हो। हम उसे तुम्हारी मदद के लिए पकड़ लाएँगे। लेकिन घड़ी की मरम्मत तो तुम्हें करनी ही होगी। (अधिकारी-2 से) शहर में मुनादी करा दो कि हानूश का शागिर्द जेकब, जहाँ भी हो, घड़ी की मीनार में पहुँच जाए।
हानूश : आप मुझे हाँकते हुए यहाँ तक ले आए हैं और यहाँ मैं घड़ी को देख तक नहीं सकता।
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