नाटक-एकाँकी >> माधवी माधवीभीष्म साहनी
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प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है
[तभी आकाशवाणी होती है]
आकाशवाणी : तुम किस प्रलोभन में पड़ रहे हो, युवक ? कल तो आत्महत्या करने जा रहे थे, और आज चक्रवर्ती राजा बनने के सपने देखने लगे हो? क्या तुम दो व्यक्तियों से विश्वासघात करोगे? अपने गुरु के साथ भी और महाराज ययाति के साथ भी? देवलोक में सभी देवता तुम्हारी ओर आँख लगाये हुए हैं कि तुम किस दिशा में अपने पाँव बढ़ाओगे।
माधवी का प्रवेश
गालव : देर तक माधवी की ओर देखता रहता है
माधवी! माधवी : क्या देख रहे हो, गालव ?
गालव : तुम कितनी सुन्दर हो! तुम्हें पाकर कोई भी राजा धन्य होगा।
माधवी : क्या कह रहे हो, गालव ?
गालव : तुम क्या चाहती हो माधवी ?
माधवी : संकोच में मैं क्या चाहूँगी ? मेरे चाहने से क्या होता है, गालव ? मैं तो तुम्हारी गुरु-दक्षिणा का निमित्त मात्र हूँ।
गालव : यह तुम क्या कह रही हो, माधवी? तुम दानवीर ययाति की कन्या हो। जिस बालक को तुम जन्म दोगी, वह चक्रवर्ती राजा बनेगा। तुम्हें देवताओं का वरदान प्राप्त है।
माधवी : एक क्षीण-सी मुस्कान माधवी के होंठों पर आती है फिर भी तो निमत्ति ही बनूंगी, गालव । आज तुम्हारे लिए, कल किसी राजा के लिए।
गालव : तुम्हें बहुत बड़ा दायित्व निभाना है, माधवी, पर क्या बात है, तुम बड़ी खोयी-खोयी लग रही हो !
माधवी : क्यों? क्या मैं नाचं? गाऊँ ? अपने भाग्य पर इठलाऊँ ? पिताजी ने आदेश दिया तो तुम्हारे साथ चली आयी, तुम आदेश दोगे तो किसी राजा के रनिवास में चली जाऊँगी।
गालव : ठिठक-सा जाता है यह तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता, माधवी !
माधवी : क्या अच्छा नहीं लगता?
गालव : कि तुम किसी राजा के रनिवास में रहने लगो और हम एक दूसरे से अलग हो जायें।
[दोनों क्षण-भर के लिए मौन रहते हैं, एक-दूसरे की ओर देखते रहते हैं]
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