नाटक-एकाँकी >> माधवी माधवीभीष्म साहनी
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प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है
कथावाचक : राजाओं के दिल की थाह कोई नहीं पा सकता। कहाँ तो महाराज ययाति अपनी एकमात्र कन्या का स्वयंवर रचाने जा रहे थे, और कहाँ उसे एक क्षण में दान में दे दिया और पलक झपकते घर से विदा भी कर दिया।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ भी तो ऐसा ही हुआ था। कहाँ तो अयोध्या में राज्याभिषेक की तैयारियां चल रही थीं और कहाँ राम चौदह साल के लिए वनों को जा रहे थे।
पर क्या मालूम ययाति ने यही सोचकर उसे दान में दे दिया हो कि वह एक-न-एक दिन किसी राजा की पटरानी तो बनेगी ही- उसके लक्षण जो ऐसे थे—क्यों न मुनिकुमार की प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाये । एक पन्थ, दो काज!
भविष्य में देव ने क्या लिखा है, कौन जाने, भविष्य के पर्दे के पीछे कभी किसी ने झाँककर थोड़े ही देखा है।
तो देवियो और भद्रपुरुषो, मुनिकुमार गालव और माधवी अश्वमेधी घोड़ों की खोज में निकल पड़े। घोड़े भी साधारण घोड़े नहीं, अश्वमेधी घोड़े। अश्वमेधी घोड़ा तो बड़ा विरल होता है, यह वह घोड़ा है जिसका शरीर सफेद और कान काले रंग के होते हैं। इसी कारण इसे श्यामकर्णी भी कहते हैं। यह केवल पराक्रमी राजाओं के पास मिलता है। अश्वमेध यज्ञ में यही घोड़ा प्रयोग में लाया जाता है। अब ऐसा घोड़ा कहाँ मिलेगा, वह भी एक नहीं, पूरे आठ सौ! कौन है ऐसा प्रतापी राजा जिसके पास आठ सौ अश्वमेधी घोड़े होंगे?
[कथावाचक के कथन के बाद, मंच पर गालव अकेला खड़ा है, तरह-तरह के विचार उसके मन में उठ रहे हैं। ]
गालव : स्वतः चक्रवर्ती ! चक्रवर्ती राजा को जन्म देगी ! माधवी जिसे जन्म देगी वह चक्रवर्ती राजा बनेगा, ऐसा ही कहा महाराज ने ! क्या माधवी के गर्भ से पैदा होनेवाला गालव का पुत्र भी चक्रवर्ती राजा हो सकता है? चक्रवर्ती गालव ! मेरे सामने सम्भावनाओं के कैसे प्रसार खुलने लगे हैं। माधवी को पाने का अर्थ है, चक्रवर्ती राजा तक बन जाने की सम्भावना !
ये कैसे विचार मेरे मन को विचलित करने लगे हैं ?
· · 'मैं वचनबद्ध हूँ। मुझे गुरु-दक्षिणा का ऋण चुकाना है। और माधवी, मेरे ऋण चुकाने का माध्यम है, इससे अधिक कुछ नहीं। पर माधवी को पाठ सौ घोड़ों के बदले किसी राजा को दे देने का मतलब होगा, माधवी को सदा के लिए खो देना। माधवी उसी की होकर रह जायेगी।''आठ सौ अश्वमेधी घोड़े? वे मिलेंगे कहाँ ? गुरु महाराज मुझे मेरे हठ का दण्ड देना चाहते हैं। उन्होंने जान-बूझकर मुझे ऐसी परीक्षा में डाला है कि मैं विफल हो जाऊँ, और उनके सामने घुटने टेककर क्षमा याचना करूँ। एक विद्यार्थी आठ सौ घोड़े कहाँ से जुटा सकता है? वह मुझे लज्जित करना चाहते हैं। नहीं तो आठ सौ घोड़े कौन माँगता है ? पहले कभी भी उन्होंने अपने किसी शिष्य से ऐसी गुरु-दक्षिणा नहीं मांगी। फिर मुझ पर ही ऐसी कृपा क्यों?
कैसे क्षुद्र विचार मेरे मन में उठने लगे हैं। क्या मैं पथभ्रष्ट हो रहा हूँ ? अपना दायित्व भूल रहा हूँ? मेरे गुरु ने मुझे एक परीक्षा में डाला, परिस्थितियाँ मुझे दूसरी परीक्षा में डाल रही हैं। माधवी के मन में क्या है, वह क्या सोचती है, कौन जाने ? 'यदि मुझे आठ सौ घोड़े मिल भी गये तो मैं अपनी प्रतिज्ञा भले ही पूरी कर लूँ, माधवी को खो बैलूंगा, वह किसी राजा की पटरानी बन जायेगी।''गुरु-दक्षिणा का वचन पूरा कर भी लिया तो क्या होगा? मुझे मिलेगा क्या? इतना भर सन्तोष कि मैंने गुरु-दक्षिणा जुटा दी? बस, इतना ही? उसके लिए माधवी को सदा के लिए खो दूं? माधवी को खो देना, अपने भाग्य को खो देना होगा।... मुस्कराता है
कैसी विडम्बना है, माधवी मेरे जीवन में साधन बनकर आयी है। उसके द्वारा मैं गुरु-दक्षिणा का दायित्व पूरा कर सकता हूँ, ''उसी के द्वारा मैं चक्रवर्ती राजा भी बन सकता हूँ !
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