नाटक-एकाँकी >> माधवी माधवीभीष्म साहनी
|
1 पाठकों को प्रिय 157 पाठक हैं |
प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है
[ययाति मौन हो जाते हैं; और सिर झुकाये सुनते . रहते हैं]
सभी आपका नाम सत्य हरिश्चन्द्र के साथ जोड़ते थे- हरिश्चन्द्र के बाद आर्यावर्त में एक ही दानवीर राजा है और वह ययाति [ययाति अपनी प्रशंसा सुनकर पुलकित हो उठते हैं।]
लोग कहते थे, जैसे मरुस्थल में भटकनेवाला व्यक्ति झरने की ओर भागता है, वैसे ही हताश व्यक्ति ययाति के द्वार की ओर उन्मुख होता है। ययाति ने आज तक किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया है। मैंने यही सुना था ! पर मुझसे भूल हुई, महाराज, मैं क्षमा चाहता हूँ। आज्ञा दीजिए।
ययाति : तुम मेरी निःसहायता पर व्यंग्य कर रहे हो, मुनिकुमार, पर तुम्हारी यह अभ्यर्थना तो मैं सिंहासन पर बैठते हुए भी पूरी नहीं कर सकता था।
गालव : आप चिन्ता न करें, महाराज, यदि मेरी साधना में दोष नहीं है, तो आठ सौ अश्वमेधी घोड़े मैं कहीं-न-कहीं से प्राप्त कर लूंगा।
ययाति : स्वतः अब अभ्यर्थी भी मुझ पर दया करने लगे हैं। उन्हें मुझसे निराशा होने लगी है । अब ययाति दानवीर, उदारमना नहीं, एक क्षुद्र साधारण जीव कहलायेगा । कर्ण दानवीर हैं, युधिष्ठिर उदात्त मना हैं, हरिश्चन्द्र सत्यव्रती हैं, पर ययाति...?
गालव : आज्ञा दीजिए, महाराज ।
ययाति : गम्भीरता से ठहरो, मुनिकुमार । तुमने मेरे आत्मसम्मान को चुनौती दी है। मेरे पास आनेवाला कोई भी अभ्यर्थी आज तक खाली हाथ नहीं लौटा है।
गालव : आप चिन्ता न करें, महाराज । मुझसे भूल हुई।
ययाति : ठहरो, मुनिकुमार । तुम मेरा अपमान कर रहे हो । तुम ययाति के द्वार पर आये हो । मैं ही ययाति हूँ।
परिचारक से
माधवी को बुलाओ।
|