नाटक-एकाँकी >> माधवी माधवीभीष्म साहनी
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प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है
ययाति : पुलकित हो उठते हैं तुम अभी भी ऐसा सोचते हो, मुनिकुमार ?
गालव : मैं ही नहीं, महाराज, समस्त आर्यावर्त ऐसा सोचता है।
[ययाति मुस्कराते हुए टहलने लगते हैं] ययाति : हम तुम्हारी निष्ठा की प्रशंसा करते हैं, मुनिकुमार, पर अश्वमेध के आठ सौ घोड़े तुम्हें कहीं पर नहीं मिलेंगे। हमारा यही सुझाव है कि तुम विश्वामित्र के पास लौट जाओ।..
गालव : महाराज का क्या यही निर्णय है ?
ययाति : तुम्हारे साथ हमारे आश्रमवासी मित्र जा सकते हैं। वह ऋषि विश्वामित्र को हमारी ओर से सारी स्थिति समझा देंगे। तुम्हारे गुरुदेव हमारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे और तुम्हें इस ऋण से मुक्त कर देगे। इसमें तुम्हारी हेठी भी नहीं होगी।
गालव : नहीं महाराज, मैं वचनबद्ध हैं। गुरु-दक्षिणा में आठ सौ घोड़े देने की शपथ ले चुका हूँ। मैं आपके पास अपना वचन निभा पाने के लिए आया हूँ, वचन भंग करने के लिए नहीं आया हूँ।
ययाति : अब मैं राजा नहीं हूँ, मुनिकुमार, आश्रमवासी हूँ। जिन दिनों मैं पराक्रमी राजा माना जाता था, उन दिनों भी मेरे पास आठ सौ अश्वमेधी घोड़े नहीं थे, इस समय कहाँ होंगे? तुम्हारा आग्रह अनुचित है।
गालव : मुझसे भूल हुई महाराज । भूलकर किसी दूसरे ययाति के द्वार पर चला आया। मैं दानवीर राजा ययाति का द्वार खोज रहा था।
ययाति : चौंककर नहीं, तुम दानवीर ययाति के द्वार पर ही आये हो। तुम्हारी प्रतिज्ञा बड़ी असंगत है मुनिकुमार, इसके पालन की अपेक्षा तो तुमसे तुम्हारे गुरुदेव भी नहीं करते थे।
गालव : मैं जहाँ-जहाँ गया हूँ, सभी ने एक ही नाम सुझाया है, ययाति, ययाति के पास जाओ, वही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं।
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