भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1 द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1ओम प्रकाश पांडेय
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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....
उत्तानपाद शाखा
स्वायंभुव मनु के कनिष्ठ (दूसरे) पुत्र उत्तानपाद एक जोशीले तथा समर्थ
प्रजापति सिद्ध हुए। इन्हें सुरुचि नामक स्त्री से उत्तम तथा सुनीति नामक
स्त्री से ध्रुव, कीर्तिमान, अयस्मान व वसु नामधारी पुत्रगण एवं मनस्विनी व
स्वरा नामक दो कन्याएँ हुईं (वायु पुराण-62.77)। अपने आनुवंशिक स्वभावों के
अनुरूप उत्तम की अभिरुचियाँ सामाजिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने की ही रही
थीं। अपने इन्हीं गुणों के कारण पिता व प्रजा के विशेष स्नेहभाजन बने उत्तम
को जन-समुदाय 'मनु' के अतिरिक्त विशेषण से संबोधित करने लगे। स्वायंभुव मनु व
मेघातिथि के वंश में हुए स्वरोचिष मनु के अनुशासन-उपेदशों तथा स्वयं के
अनुभवों के आधार पर मानवी-अनुशासन से संबंधित कुछ नए प्रकरणों पर भी मनु
उत्तम ने प्रकाश डाला और जीवनपर्यंत इसके क्रियात्मक अनुसरण के लिए प्रयासरत
रहे।
इधर धर्मपरायण माता के सान्निध्य में ध्रुव का झुकाव आध्यात्मिकता की ओर
बढ़ता चला गया। शासन व्यवस्था के प्रति ध्रुव की अरुचियों से उत्तानपाद अपने
इस पुत्र से खिन्न रहने लगे। पिता का अपने प्रति उत्पन्न इस उपेक्षाभाव से
दुःखी होकर ध्रुव ने ज्ञानार्जन के माध्यम से समाज में अपने को प्रतिष्ठित
करने का निश्चय किया। दृढ़-प्रतिज्ञ ध्रुव ने कठोर साधना द्वारा अपने इस
लक्ष्य को अंततः प्राप्त कर लिया तथा उसके इस कृत्य की सर्वत्र सराहना होने
लगी। पुत्र की इस उपलब्धि से आत्मविभोर होकर उत्तानपाद ने ध्रुव के प्रति न
केवल वात्सल्यता ही प्रदर्शित की, अपितु अपने हिस्से में प्राप्त पृथ्वी के
सुदूर उत्तरी द्वीप का उसे प्रजापति भी नियुक्त कर दिया। दृढ़व्रती ध्रुव के
ख्याति के अनुरूप उसके आधिपत्य में आए इस द्वीप को तदनुसार 'ध्रुव प्रदेश' के
नाम से जाना जाने लगा।
ध्रुव को भूमि नामक स्त्री से शिष्टि व भव्य नामक दो प्रतिभावान् पुत्र हुए।
भव्य को शंभु व शिष्टि को सुच्छाया नामक स्त्री से रिपु, रिपुंजय, विप्र,
विकल व वृकतेजा नामधारी पाँच पुत्र हुए। शिष्टि के इन पाँच पुत्रों में रिपु
का ही वंश उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त हुआ। रिपु को वृहती नामक स्त्री से
संभाव्य नामक पुत्र हुआ। संभाव्य को सुबल, सुबल को सुकेतु तथा इसे कविरुत
नामक पुत्र हुआ। कविरुत को कृतांत, कृतांत को प्रत्यंग, प्रत्यंग को विभृत
तथा इसे नय नामक पुत्र हुआ। नय को देवानुज, देवानुज को पश्य, पश्य को
सुक्षेत्र, सुक्षेत्र को सुमना, सुमना को यश, यश को सुवेता और इसे औशिज नामक
पुत्र हुआ। औशिज का पुत्र सुप्रचेता अपने समय का प्रसिद्ध प्रजापति हुआ।
सुप्रचेता का पुत्र केतु,ग, केतु,ग को ऊरु नामक पुत्र हुआ। ऊरु भी ध्रुव
प्रदेश के प्रजापति हुए। इनका पुत्र श्येनभद्र हुआ, श्येनभद्र को पथ्यनेत्र,
पथ्यनेत्र को विभाक, विभाक को उत्तमौजा व इसे वृहतद्रुह नामक पुत्र हुआ। इस
तरह वृहतद्रुह को शुभ, शुभ को रवि, रवि को धुति, द्युति को नव तथा इसे परहा
नामक पुत्र हुआ। परहा को शुचि, शुचि को महोत्साह, महोत्साह को ज्योति, ज्योति
को विचित्र व इसे निरामित्र नामक पुत्र हुआ। निरामित्र को एक दृढ़ हठी पुत्र
दृढ़व्रत हुआ। दृढव्रत एक कुशल प्रजापति हुआ। इसी के काल में आए प्राकृतिक
बदलावों के कारण ध्रुव प्रदेश में मानवों का रहना कष्टकारक हो गया। प्रजा को
इन जलवायविक आपदाओं से बचाने के उद्देश्य से दृढ़व्रत ने उन्हें दक्षिण के
भू-भाग पर विस्थापित किया। दृढ़व्रत का पुत्र कीर्तिमान एक प्रतापी प्रजापति
हुआ। नए क्षेत्र में विस्थापित हुए प्रजा के रहन-सहन व जीवनोपयोगी व्यवस्था
के कारण यह काफी प्रसिद्ध हुआ। कीर्तिमान का पुत्र विराट्, विराट् का विनित,
विनित का पुत्र चैत्र तथा इसका पुत्र सुमित्र हुआ। धीरे-धीरे दक्षिण की तरफ
बढ़ते हुए प्रजापति सुमित्र ने भारतीय महासागर में स्थित एक द्वीप को अपने
अधिकार में ले लिया। सुमित्र के नाम पर यह द्वीप कालांतर में सुमात्रा के नाम
से प्रसिद्ध हुआ। सुमित्र को ख्याति, ख्याति को दिव्य, दिव्य को किम्पुरुष
नामक पुत्र हुआ। प्रजापति किम्पुरुष एक अजेय योद्धा हुआ। अपने पराक्रम के बल
पर उसने दक्षिण-पूर्वी एशिया के क्षेत्र को विजित कर अपने राज्य की सीमा का
समुचित विस्तार किया। किम्पुरुष को नर तथा नर को रिपु नामक प्रजापति पुत्र
हुए। रिपु को चाक्षुष नामक एक अति प्रतापी पुत्र पैदा हुआ।
प्रजापति चाक्षुष ने प्रियव्रत शाखा के प्रजापतियों द्वारा विभिन्न
प्रजापतियों से हुई मुठभेड़ में खोई भूमि को अपने अधिकार में लेते हुए नैवध व
श्वेतांचल सहित माल्यवान प्रदेश तक अपने राज्य का विस्तार किया। चाक्षुष
प्रजापति को पुष्करणी नामक स्त्री से गंभीरबुद्धि नामक एक होनहार पुत्र
प्राप्त हुआ। पिता द्वारा विजित किए गए क्षेत्रों में अपने पूर्ववर्ती मनुओं
यथा स्वायंभुव, स्वरोचिष, उत्तम, तामस व रैवत द्वारा स्थापित आदर्शों के
अनुरूप मानवी-व्यवस्था के सुचारु प्रबंधन के कारण यह काफी लोकप्रिय हो गया।
अपने इन्हीं गुणों के कारण शौर्यवान् पिता का यह प्रजावत्सल पुत्र जन-समुदाय
में चाक्षुष-मनु के नाम से विख्यात हुआ।
विराज प्रजापति की पुत्री नडवला के गर्भ से चाक्षुष-मनु को अरण्यरति,
जानंतपति, अभिमन्यु, ऊरु, पुरु, तपोरत, शुचि, शतधुम, सत्यवान व नारायण नामक
दस पुत्र हुए। चाक्षुष मनु के इन दस-पुत्रों में से शुचि, शतद्रुम व सत्यवान
सांसारिक सुखों से विरक्त हो वीतरागी मुनि हो गए। शेष बचे सात में से
अरण्यरति, जानंतपति, अभिमन्यु, ऊरु, पुरु व तपोरत आदि छह भाइयों ने भारत खंड
के पश्चिम में स्थित इलावर्त को दस्यु प्रवृत्त के शासकों से मुक्त कराने के
लिए भयंकर अभियान शुरू किया। अपने प्रबल आक्रमण से इन छह भाइयों ने
दक्षिण-पश्चिम के क्षेत्रों को अपने अधिकार में ले लिया। इस प्रकार अरण्यरति
हरयु (हिरात) व वक्रित (काबुल) के व जानंतपति सुग्द, मरु, वरवधी व निशा
(पर्शिया के चार खंडों) के शासक हुए। अरण्यरति के ही नाम पर काकेशस क्षेत्र
के एक प्रांत का नाम अर्राट पड़ा। आजकल इसे ही आरमेनिया कहा जाता है। सीरिया
के एक नगर को आज भी एड्राट के नाम से पुकारा जाता है, संभवतः यह अधरत या
अत्यरात या फिर अरण्यरति का ही बिगड़ा हुआ स्वरूप हो। अभिमन्यु ने क्रौंच
द्वीप के यूनान पर अपना कब्जा कर लिया। ग्रीक साहित्य में इन्हें 'मैमनन'
नामक भयंकर आक्रांता के रूप में संबोधित किया जाता है। ऊरु ने कुशद्वीप
(अफ्रीका) व शृंगवान प्रदेश (सीरिया व बेबीलोनिया आदि) को जीता। इन्हीं के
प्रभाववश बेबीलोनिया के एक प्रदेश का नाम उर तथा ईरान के एक पर्वत का नाम उरल
पड़ा। प्रसिद्ध अप्सरा उर्वशी इसी उर प्रदेश की रहनेवाली थी। ऊरु के पुत्र
अंगिरा हुए। अंगिरा ने कुश द्वीप (अफ्रीका) को जय किया। अफ्रीका का
अंगोरा-पिक्यूना व अंगोला आदि क्षेत्रों के नाम अंगिरा से ही अभिप्रेरित
दिखते हैं। इसी तरह पुरु द्वारा जीते गए इलावर्त का क्षेत्र पुरसिया व तदंतर
पर्शिया के नाम से विख्यात हुआ। सैनिक अभियान के इस क्रम में छह भाइयों में
कनिष्ठ रहे तपोरत के अधिकार में आए क्षेत्र का नाम तपोरिया पड़ा। आजकल का
ट्यूनेशिया भी कहीं-न-कहीं से तपोरत से ही प्रभावित प्रतीत होता है। अभिमन्यु
सहित इन छह भाइयों के दुर्दीत अभियान का यहाँ के निवासियों पर इतना गहरा असर
पड़ा कि आज भी इन्हें 'सैटानिक घोस्ट' के नाम से जाना जाता है। जेंद अवेस्ता
में अभिमन्यु आदि भ्राताओं के लिए 'अहिरमन' शब्द का प्रयोग किया गया है।
प्रियव्रत शाखा के प्रजापति विराज की पुत्री नडवला से चाक्षुष-मनु (उत्तानपाद
शाखा) को हुए दस पुत्रों में नारायण सबसे कनिष्ठ थे। अरण्यरति-पुरु आदि
भ्राताओं द्वारा विजित प्रांतों में प्रजा-पोषण के अन्य प्रबंधों के साथ-साथ
जल-भराववाले क्षेत्रों से उन्होंने जल-निकासी की भी व्यवस्था की। जल के लिए
संस्कृत में 'नार' तथा विभाजन के लिए 'अयन' शब्द का भी प्रयोग किया जाता है।
संभवतः निकासी के लिए जल का समुचित विभाजन करने के कारण ही इन्हें 'नारायण'
(नार+अयन) के नाम से पुकारा जाने लगा हो। तदंतर प्रजा अर्थात् विश के हितार्थ
इनके द्वारा प्रारंभ किए गए भरण-पोषण के कार्यक्रमों के कारण नारायण को
'विष्णु' के उपनाम से भी संबोधित किया जाने लगा। वैदिक ऋचाओं के मंत्रद्रष्टा
ऋषि के रूप में इस प्रतिष्ठित पुरुष का उल्लेख ऋग्वेद (10/90) में भी हुआ है।
वैदिक 'पुरुष सूक्त' इन्हीं के द्वारा प्रकट होने के कारण ‘नारायण सूक्त' के
नाम से भी प्रसिद्ध है। नारायण (विष्णु) की सहगामिनी के रूप में भृगु पुत्री
'श्री' प्राप्त हुई। क्षीर सागर स्थित 'वैकुंठ' नामक स्थान को नारायण ने अपना
निवास (धाम) बनाया था। मार्को पोलो के जमाने तक कैस्पियन सी (कश्यप सागर) को
'शीरवान' ही कहा जाता रहा था। 'शीर' फारसी का शब्द है, जो संस्कृत 'क्षीर' का
ही अपभ्रंश है। इस तरह क्षीर-सागर से 'शीरवान' (कैस्पियन सी) का ही आशय
निकलता है। ईरान की सीमा से सटे तुर्किस्तान के उत्तरी-पूर्वी भाग को आज भी
'इरानियन पैराडाइज' यानी 'ईरान का स्वर्ग' ही कहा जाता है। कैस्पियन सी के
पश्चिमी तट पर स्थित इसी स्थान में हुई हाल की खुदाई में पुरातत्त्व वेत्ताओं
को 'बैकुड' नामक एक प्राचीन नगर के खंडहर मिले हैं। ये सभी तथ्य इस बात का
संकेत करते हैं कि कैस्पियन सी (क्षीर सागर) के पश्चिमी तट पर एलब्रुज पर्वत
शिखर के समीप ही नारायण का 'वैकुंठ धाम' स्थित था। श्री व नारायण को विराज
नामक एक पुत्र तथा विराज को कीर्तिमान नामक पुत्र हुआ।
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