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भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

ओम प्रकाश पांडेय

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :9789351869511

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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....


स्वायंभुव मनु को शतरूपा नामक अपनी सहधर्मिणी से प्रियव्रत व उत्तानपाद नामक जिन दो पुत्रों की प्राप्ति हुई थी, उन्हीं के वंशजों से प्रसूत हुई मनुओं, प्रजापतियों व राजाओं की श्रृंखलाओं को भारतीय ग्रंथों में इन्हीं के अनुरूप दो विभिन्न शाखाओं में विभाजित किया गया है। प्रियव्रत के नाम से चिह्नित हुई शाखा की कुल 55 पीढ़ियों में तीन मनु (स्वारोचिष, तामस व रैवत) तथा सैंतालीस प्रजापति हुए, जबकि उत्तानपाद के नाम से प्रसिद्ध हुई दूसरी शाखा की कुल 72 पीढ़ियों में दो मनु (उत्तम व चाक्षुष) व बावन प्रजापतियों के अलावा नव-सृजित पद के अनुरूप 18 राजा (अनंग, अतिबल, वेन व पृथु आदि) हुए। चूँकि प्रियव्रत शाखा की पचासवीं पीढ़ी में हुई 'नडवला' नामक कन्या का विवाह उत्तानपाद शाखा की इक्यावनवीं पीढ़ी में हुए 'विराज' से हुआ था और इन्हीं के प्रपौत्र 'कीर्तिमान' ने इन दोनों ही शाखाओं द्वारा संचालित हो रहे अलग-अलग राज्यों का संयुक्त प्रभार अपने प्रतापी पुत्र 'कर्दम' को सौंपा था, अतः कर्दम से अस्तित्व में आई संततियों का वर्णन इस पुस्तक में 'संयुक्त शाखा' के रूप में ही किया गया है। समूचे विश्व में विकसित हो रही मानवी शृंखला को सामाजिक सूत्र में पिरोने के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य से स्वायंभुव मनु ने धरती की परिधि को दो बराबर हिस्सों में नियत करते हुए इनका दायित्व अपने पुत्रों को सुपुर्द किया था। इस प्रकार मेरु क्षेत्र (हिमालय) से संबंधित आसमुद्र भूखंड (यूरेशिया व अफ्रीका) का भार प्रियव्रत के तथा उत्तर के द्वीपों सहित अन्य खंडों का प्रभार उत्तानपाद के हिस्से में आया। अपने हिस्से में पड़े विस्तृत भूखंडों के समुचित प्रबंधन के लिए प्रियव्रत ने इसे सात बराबर भागों (जंबूद्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मल द्वीप, क्रौंच द्वीप, कुश द्वीप, शाक द्वीप व पुष्कर द्वीप) में बाँटते हुए यहाँ के निवासियों को नियोजित करने का कार्य इसी के अनुरूप अपने पुत्रों को सौंप दिया। इस प्रकार इन दोनों शाखाओं के यशस्वी वंशजों के उद्यमों से ही मेरु क्षेत्र से इतर की आद्य मानवी-सभ्यताओं का प्रस्फुटन संभव हो पाया था। प्रियव्रत से पाँचवीं पीढ़ी में हुए महान् 'भरत' के प्रयत्नों से विश्व में जिस प्रथम राष्ट्र राज्य का उदय हुआ, उसका नामकरण भी इस यशस्वी पुरुष के प्रतीकात्मक 'भारतवर्ष' के रूप में प्रतिष्टित हुआ। चूँकि स्वायंभुव मनु के कुल में उत्पन्न हुए प्राचेतस दक्ष को कोई पुत्र नहीं हुआ था, अतः 73 पीढ़ियों से चली आ रही इस वंश शृंखला का तेरह कन्याओं के जनक रहे दक्ष नामधारी नृप के पश्चात् पटाक्षेप हो गया। प्राचेतस दक्ष ने अपनी इन तेरह कन्याओं का विवाह ब्रह्मा के मानस-पुत्र रहे, मरीचि के कुल में उत्पन्न प्रतापी कश्यप से कर दिया था, फलतः तत्पश्चात् विकसित हुई सभ्यताओं व प्रजातियों के जनक प्रकट रूप में इन महिमामंडित कन्याओं के काश्यप गोत्रीय वंशधर ही हुए।

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