बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1 युद्ध - भाग 1नरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास
राम के मन में विकट द्वन्द्व चल रहा था। वे अपने साथियों की सहायता के लिए मेघनाद से लोहा लें या सेतु-क्षेत्र की रक्षाकर वानर सेना के प्राण बचाए रखें। दोनों ही स्थान उन्हें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लग रहे थे, यदि सेतु-क्षेत्र राक्षसों-के अधिकार में चला गया तो वानर सेना को भी, राक्षस अवरोध में ले सकेंगे और यदि उनके साथी एक-एक कर धराशायी होते गए तो जीता हुआ युद्ध भी पराजय में बदल जाएगा।
तभी राम को सूचना मिली कि मेघनाद का रथ उनकी दिशा में बढ़ रहा है। लक्षण के संकेत पर शिला-प्रक्षेपण-यंत्र के चालकों ने एक भारी शिला-यंत्र की भुजा के एक सिरे पर रखी और दूसरे सिरे को पकड़ कर अनेक लोग झूल गए। झटके के साथ शिला उछली और ठीक अपने लक्ष्य पर जा गिरी। मेघनाद के रथ का एक घोड़ा-लहू-लूहान हुआ भूमि पर गिर पड़ा था। राम ने मुग्ध दृष्टि से अपने यंत्र-चालकों को देखा : वे लोग निश्चित रूप से साधुवाद के पात्र थे ...किंतु मेघनाद के साथी ने मृतप्रायः घोड़े को खोलकर रथ आगे बढ़ा दिया था।
राम ने देखा : रथ के मध्य में कोई बड़ा-सा यंत्र रखा था-इसे ही कदाचित् ब्रह्मास्त्र कहा जा रहा था। मेघनाद कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। कहीं वह इस यंत्र के भीतर सुरक्षित बैठा हुआ ही तो यंत्रपरिचालित नहीं कर रहा था? तभी ब्रह्मास्त्र में से बाणों, नालीकी, नाराचों, मूसलों, परिधों, शक्तियों, शूलों, शतघ्नियों, खंगों और फरसों की वृष्टि होने लगी...राम, विस्मय की मुद्रा में उस यंत्र को देख रहे थे...। अपने धनुष बाण और खड्ग से कोई इस यंत्र का सामना कैसे करेगा?...इस बीच लक्ष्मण के धनुष से कुछ बाण छूटे और मेघनाद के रथ के कुछ और घोड़े घायल हो गए। राम का बाण खाकर उसका सारथी धराशायी हो गया था ...किंतु शस्त्रों की वह वर्षा...
"सौमित्र। यह क्या है...राम का सारा शरीर शस्त्रों से बिंध गया था। असंख्य स्थानों से रक्त की धाराएं बह रही थीं मस्तक चकरा रहा था, उनके हाथ शिथिल हो गए। धनुष हाथ से गिर गया। संज्ञाशून्य होने से पूर्व उन्होंने देखा कि लक्ष्मण की भी उन्हीं की-सी दुर्दशा हो गई थी और वे भूमि पर अचेत पड़े थे...उनके अचेत होते हुए मस्तिष्क ने यह भी देखा था कि तेजधर और उनके साथी सहायक सैनिक युद्ध-क्षेत्र में घुस आए थे और उन्हें तथा लक्ष्मण को घेरकर, मेघनाद से उनकी रक्षा करने का प्रयत्न कर रहे थे..."
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