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बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

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राम कथा पर आधारित उपन्यास

हनुमान ने सागरदत्त को संकेत किया। मुख से कुछ नहीं बोले।

उन्होंने उल्काएं प्रज्वलित कर लीं, और सैकड़ों व्यक्ति एक-एक शरीर को उठाकर उसका परीक्षण करने लगे। इस क्षेत्र का युद्ध अत्यंत भयंकर रहा होगा। मृतकों के ऐसे ढेर अन्यत्र नहीं मिले थे।

उन्हीं ढेरों में से अनेक जीवित-किंतु मूर्च्छित अथवा मृत्यु की सीमा तक आहत शरीर उन्हें मिले थे। उन्हें उठा-उठाकर वे लोग चिकित्सा शिविर में ले जा रहे थे। सुषेण स्वयं भी आहत और मूर्च्छित अवस्था में पाए गए थे। उनके कुछ अनुचर-सहयोगी ही आहतों तथा मूर्च्छितों का यथाशक्ति उपचार कर रहे थे। उनके पास गरुड़ द्वारा दी गई दिव्य औषधियां भी अब समाप्त हो गई थीं। अब वे साधारण औषधियों में ही काम चला रहे थे।

सागरदत्त ने ठीक कहा था। शरीरों के उन्हीं ढेरी में से राम और लक्ष्मण के शरीर भी मिल गए थे। उनकी मृत्यु नहीं हुई थी; किंतु वे मृत-प्राय अवस्था में थे। शरीर पर अनेक घाव लगे हुए थे। अनेक बाण उनके कवचों को काटकर उनके शरीर में धँसे हुए थे। संज्ञा-शून्य और मूर्च्छित अवस्था में पहली दृष्टि में वे मृत ही दिखाई पड़ते थे।

हनुमान और विभीषण, जब तक राम और लक्ष्मण को लेकर चिकित्सा कुटीर में पहुंचे, तब तक वहां अनेक अन्य लोग भी आ चुके थे, या लाए जा चुके थे। सुग्रीव, अंगद, और नील चैतन्य, किंतु आहत अवस्था में थे और दुर्बलता के कारण कुछ कर नहीं पा रहे थे। सुषेण, केसरी, ऋषभ तथा द्विविद मूर्च्छितावस्था में थे। जाम्बवान अत्यन्त घायल थे, उनके शरीर से अधिक मात्रा में रक्त बह जाने के कारण वे बहुत क्षीण हो चुके थे। जाम्बवान, धरती पर हाथ टेक कर अत्यंत दुर्बल वृद्ध के समान उठे। मंथर गति से धीरे-धीरे चलकर राम के पास आए। उन्होंने पहले उनका नाड़ी-परीक्षण किया; फिर हृदय पर हाथ रखा। वक्ष पर कान लगाकर हृदयगति को सुनने का प्रयल किया। उसी प्रकार का भी परीक्षण कर वे हनुमान की ओर घूमे।

"जीवित हैं किंतु मृत्यु के बहुत निकट।" जाम्बवान बोले, "मैं वैद्य नहीं हूं, किंतु कुछ समय मैंने भी सुषेण की संगति में व्यतीत किया है। उसी ज्ञान और अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं कि ये दोनों भाई कल का सूर्योदय नहीं देख पाएंगे।"

"क्या?" हनुमान का मुंह खुला-का-खुला रह गया।

दुर्बल सुग्रीव और अंगद भी उठकर उनके पास आ गए। लगा, विभीषण को चक्कर आ गया। वे अपने स्थान पर ही भूमि पर बैठ गए।

"किंतु इस अवस्था में भी यदि कुछ उद्यम कर सको तो बात अभी पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है।" जाम्बवान धीरे से बोले।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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