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उपन्यास >> संघर्ष की ओर

संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

"अनिन्द्य।..." धर्मभृत्य ने कुछ कहना चाहा।

किंतु राम ने उसे रोक दिया, "बोलो अनिन्द्य!" राम हंसे, "लक्ष्मण और मुखर! तुम लोग अपने धनुष अलग रख दो; और सीते! तुम भी मृकुटियों को विश्राम दो।"

"आर्य!" अनिन्द्य बोला, "आप लोग क्यों नहीं चाहते कि हम कुछ दिन शांति से जिए?"

"स्पष्ट कहो अनिन्द्य! क्या बात है?" राम मुस्कराए।

"हम कष्ट में हैं-इसमें कोई संदेह नहीं।" अनिन्द्य बोला, "किंतु आप लोग हमारे कष्टों को कम तो नहीं करते। पहले मांडकर्णि आए,, उन्होंने हमें आशाएं दिलाईं और फिर वे प्रासाद में जा बैठे और हमारे प्राणों पर आ बनी। हमारी स्त्रियों का अपमान हुआ और हमारे बच्चे हमसे छिन गए..." लगता था, क्रोध के मारे अनिन्द्य रो देगा, "फिर शरभंग आए। अब आप आए हैं। आप लोग बार-बार हमारे स्वामियों को हमारे विरुद्ध भड़का देते हैं-उससे हमें क्या मिलेगा?"

लक्ष्मण कुछ उत्सुक हो, अनिन्द्य के निकट खिसक आए, जैसे उनकी रुचि की बात आई हो, "बीच में बोलना बुरा लगे तो क्षमा करना मित्र! पिछली बातों को जाने दो। यह बताओ कि तुम्हारे स्वामियों ने आज क्या कहा है?"

'अनिन्द्य रुद्ध क्रोध आंखों में लिए लक्ष्मण को घूरता रहा, "हमारे स्वामियों ने निश्चय किया है कि रात को खान में आग लगा दी जाए। खान के साथ जितने श्रमिक हो सकें, उन्हें नष्ट कर दिया जाए-जो बच जाएं, उनसे दूसरे किसी ढंग से निबटा जाए।..."

"यह सूचना कितनी विश्वसनीय है?" राम ने अनिन्द्य को देखा।

"आप विश्वसनीयता का प्रमाण ढूंढते रहेंगे और हम सब नष्ट हो जाएंगे।"

"धैर्य रखो अनिन्द्य! और मुझ पर थोड़ा विश्वास भी।"

अनिन्द्य के शरीर में जैसे सिहरन दौड़ गई। कितना क्रोध था राम के स्वर में और कितना स्नेह। अनिन्द्य चकित दृष्टि ने राम को देखता रहा-इस व्यक्ति, की निर्भीक, ईमानदार, आत्मविश्वास तथा दृढ़ संकल्पात्मक मुद्रा, सन्मुख आए किसी भी व्यक्ति को सम्मोहित कर सकती थी। अनिन्द्य के क्षोभ, भय तथा आशंकाओं के ज्वार का आवेग कुछ कम हुआ। उसे लगा, राम का आत्मविश्वास उसमें भी संचरण कर गया है...।

"सूचना को विश्वसनीय समझिए। लोग बहुत डरे हुए हैं।"

"सुरक्षा प्रबंध तो वें से भी करना ही होगा।" लक्ष्मण बोले, "अनिन्द्य! तुम्हारी बस्ती में कितने लोग लड़ सकते हैं?"

"कोई नहीं! कोई नहीं!!" अनिन्द्य फिर से अपना संतुलन खो बैठा, "हमारी बस्ती में कोई नहीं लड़ेगा। किसको अपनी जान प्यारी नहीं है?"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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