उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"तब तुम अपनी बस्ती के लोगों को नहीं जानते।" राम शांतिपूर्वक मुस्कराए, "तुम्हारी शक्ति का एक-एक व्यक्ति लड़ेगा। उन्हें युद्ध-नीति, संगठन, नेतृत्व, कार्यक्रम तथा शस्त्र मिले, तो एक-एक व्यक्ति लड़ेगा।" अनिन्द्य अविश्वास की मुद्रा में राम को देखता रहा।
राम पुनः मुस्कराए, "विश्वास नहीं होता?"
"नहीं।" अनिन्द्य ने अस्वीकार में सिर हिला दिया!
"सामान्यतः मनुष्य लड़ना नहीं चाहता, क्योंकि वह मूलतः मनुष्य है हिंस्र पशु नहीं है। जब तक युद्ध से बचने का मार्ग दिखाई गडता है, वह उससे बचता है; किंतु जब यह स्पष्ट हो जाता है कि घर के भीतर छिपा रहकर वह भूख से मर जाएगा और बाहर निकलकर शत्रु के शस्त्र से-मरना उसे है ही, मार्ग वह स्वयं चुन ले, तो वह लड़कर मरने का गौरवपूर्ण ढंग चुनता है।" राम ने रुककर अनिन्द्य को देखा, "यही लड़ोगे तो जीवन नहीं है, मृत्यु ही है- अपमानजनक तथा पीड़ादायक मृत्यु। लड़ोगे तो मृत्यु गौरवपूर्ण होगी और जीवन सुखदायक। आज चुनाव की घड़ी आ गई है।" अनिन्द्य राम को देखता रहा।
"जाओ! बस्ती वालों से पूछो, क्या कहते हैं।" राम बोले, "तब तक हम रक्षा का आयोजन करते हैं।" अनिन्द्य चला गया।
"मुखर!" राम बोले, "युद्ध-आयोजन के व्यावहारिक प्रशिक्षण का क्षण है। युद्ध-पद्धति निर्धारित करो।"
"क्या युद्ध अनिवार्य है?" धर्मभृत्य का स्वर बहुत मंद था।
लक्ष्मण ने ठहाका लगाया, "क्या हो गया, मुनिवर?"
"कुछ नहीं!" धर्मभृत्य भी हंसा, "कौमल वृत्ति जाग उठी है। रक्तपात सम्मुख देखकर मन घबरा गया है।"
"विवेक से जिसको अनिवार्य मानते हो धर्मभृत्य!" राम दृढ़ स्वर में बोले, "उसे संवेदना और व्यवहार के धरातल पर भी स्वीकार करो। जाओ, आश्रम के मुनियों और ब्रह्मचारियों को एकत्र करो।"
धर्मभृत्य के उठ जाने पर राम ने पुनः मुखर को देखा।
"आर्य! तीन स्थान की रक्षा अनिवार्य है।" मुखर धीरे से बोला, "खान, बस्ती और आश्रम।"
"मैं मुखर से सहमत हूं।" लक्ष्मण बोले।
"मैं भी!" सीता ने भी अपनी सहमति दे दी।
"ठीक है।" राम बोले, "आगे बढ़ो।"
"आप और दीदी आश्रम में रहें..."
"मैं आश्रम में नहीं रहूंगी।" सीता बोलीं, "हर बार...।"
"ठहरो सीते!" राम बोले, "अभी मुखर अपनी योजना प्रस्तुत कर रहा है। यह अंतिम निर्णय नहीं है। तुम्हें भी अपनी बात कहने का पूरा अवसर दिया जाएगा।"
"आप और दीदी आश्रम में रहें।" मुखर बोला, "सौमित्र बस्ती में रहें और मैं खान पर जाऊं। आश्रम के ब्रह्मचारी तथा बस्ती के श्रमिक हमारी सहायता करें।"
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