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संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

"अब पढ़ाई नहीं होगी। आओ मेरे साथ।" सीता बोलीं, "सबके साथ मिलकर थोड़ी देर दीदी से कुछ बातचीत करने में तो कोई आपत्ति नहीं है न?" अभी इच्छा के विरुद्ध बलात् पढ़ाए जाने की भावना के कारण मन में आया रोष, भूलर को पिघलता हुआ लगा।

"दीदी से बातचीत करने में क्या आपत्ति है?" वे लोग टोली के शेष लोगों के पास आ गए। अन्य लोग भी जाने का विचार छोड़कर बैठ गए-बातचीत में किसी को भी क्या आपत्ति हो सकती थी।

"शिक्षा बंद!" सीता बैठती हुई बोलीं, "कुछ आपसी शिकायतें करेंगे; जैसे शुभबुद्धि की शिकायत है कि भूलर अक्षर सीखना नहीं चाहता।"

"ठीक बात है दीदी।" भूलर निर्द्वन्द्व स्वर में बोला, "मैं सीखना नहीं चाहता। मुझे कौन-से शास्त्र पढ़ने हैं? मेरा कुदाल ही ठीक है। अक्षर शुभबुद्धि को सीखने दो।"

"ठीक कहते हो भूलर!" सीता मुस्कराईं, "तुम्हें अक्षर सीखकर क्या करना है। तुम कुदाल चलाते रहो, खान में से खनिज निकालते रहो और किसी ऐसे व्यक्ति को देते रहो, जो शिक्षित हो। मान लो वह व्यक्ति, ब्रह्मचारी शुभबुद्धि ही है। शुभबुद्धि सोचता-समझता रहेगा, अपना संगठन बनाता रहेगा, तुम जैसे-लोगों से काम करवाता रहेगा। अंततः वह तुमसे एकदम भिन्न कोटि का जीव हो जाएगा और मानने लगेगा कि वह तुम जैसे लोगों से कहीं श्रेष्ठ है। परिणामतः स्वयं को वह मनुष्य मानेगा और तुम्हें पशु। तुम्हारा सुख-दुख उसे स्पर्श भी नहीं करेगा। वह मानेगा कि उसकी सुविधा के लिए मरना-खपना तुम्हारा धर्म है। इस प्रकार वह राक्षस हो जाएगा। दूसरी ओर तुम अक्षर-ज्ञान से शून्य, लिखने-पढ़ने से कटे हुए विचार, चिंतन और चेतना से रिक्त होकर, उसके संगठन के नीचे पिसते हुए यह सोचते रहोगे कि तुम पशु हो और तुम किसी मानवीय अधिकार के योग्य नहीं हो। शुभबुद्धि यदि तुम्हें रोटी का टुकड़ा डाल दे तो वह उसकी कृपा है, नहीं तो भूखे रहकर, उसके लिए काम करना तुम्हारा धर्म है...।"

"यह तो आपने बात का बतंगड़ बना दिया दीदी।" भूलर हंसा, "अक्षर-ज्ञान न होने से कहीं आदमी पशु बन जाता है?"

"अक्षर-ज्ञान चेतना का आरंभ है," सीता बोलीं, "और चेतना न हो तो मनुष्य सरलता से दमित होता चला जाता है।"

"ओह! यह बात है।" भूलर कुछ सोचता हुआ बोला, "तो शुभबुद्धि ने यह क्यों नहीं बताया? वह कहता रहा कि हमें अक्षर-ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि राम ऐसा चाहते हैं।"

सीता हंसीं, "ऐसा कहा शुभबुद्धि ने? जानता है कि ज्ञान रक्षा करता है; किंतु किस प्रकार करता है, यह वह समझा नहीं पाया होगा।"

सहसा भूलर के मन में एक और जिज्ञासा उठी, "एक बात और बताओ दीदी।" हम खान में भी काम करेंगे और यहां पढ़ेंगे भी। ब्रह्मचारीगण अपने काम के साथ क्या करेंगे?"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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