उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
|
15 पाठकों को प्रिय 43 पाठक हैं |
राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"कहां?" धर्मभृत्य ने पूछा।
"अगस्त्य के कर्म क्षेत्र में।"
"मैंने उस पर विचार नहीं किया।" धर्मभृत्य कुछ सोचता हुआ बोला, "मैंने कहा न कि मैं देखता भी हूं और अनुभव भी करता हूं, किंतु कारणों का ठीक-ठीक विश्लेषण नहीं कर पाता।"
"कोई बात नहीं। देख लेते हो तो विश्लेषण भी कर लोगे," सीता बोलीं, "दूसरा उदाहरण तुम्हारे सामने है-राम तथा लक्ष्मण द्वारा तुम्हारे आश्रम तथा बस्ती में परिवर्तन। तुमने देखा-यहां भी श्रमिकों और बुद्धिजीवियों को पहले एक किया गया।"
"आज भाभी की विश्लेषण-बुद्धि विशेष रूप से तेजोद्दीप्त है।" लक्ष्मण बोले बिना नहीं रह सके।
"ऐसा नहीं है देवर! व्यक्ति अनावश्यक बोलने से बचे, अपनी ऊर्जा संचित करे, तो सार्थक बोलने पर बुद्धि तेजोद्दीप्त हो जाती है।" सीता बोलीं "यदि देवर बीच में न बोलें तो शिक्षा की बात कर लें।"
"अवश्य!" लक्ष्मण बोले। सीता बोलीं, "ऋषि अगस्त्य की ही बात लो। ऋषि ने शस्त्र-शिक्षा के साथ-साथ वानरयूथों को कृषि में सुधार करना, मछली पकड़ने के अच्छे ढंग तथा नमक बनाना इत्यादि सिखाया।"
"हां, दीदी।"
"यह तो परंपरागत आश्रम-शिक्षा नहीं है न।" सीता अपनी बात पर आईं, "ऋषि थोड़े ही समय में वानरयूथों का विश्वास जीत पाए और उनकी स्थिति को सुधार पाए, क्योंकि उन्होंने उन्हें परंपरागत आश्रम शिक्षा देकर विद्वान् और ऋषि बनाने के स्थान पर, वह शिक्षा दी, जो उनकी आर्थिक समस्याएं सुलझाकर उनका आर्थिक स्तर ऊंचा उठा सके।"
"ठीक है।"
"और यह भी तुम स्वीकार करोगे धर्मभृत्य! कि अर्थोत्पादन के साधन, प्रत्येक स्थान पर भिन्न होते हैं। ऋषि ने वानरयूथों को मछलियां पकड़ने के ढंग सिखाए, क्योंकि वे यूथ सागर-तट पर रह रहे थे; किंतु तुम्हारा क्षेत्र सागर-तट पर नहीं है। अतः हमें देखना होगा कि यहां क्या हो सकता है...।"
"यहां खनिज पदार्थों का उत्पादन होता है।" मुखर बोला।
"एकदम ठीक!" सीता बोलीं, "यहां के बालकों को पहली शिक्षा खनिज उत्पादन, उसकी सफाई, ढलाई तथा उन खनिजों पर आधृत अन्य उद्योगों के विषय में दी जानी चाहिए। उन उद्योगों की शिक्षा का यहां के बच्चों को क्या लाभ होगा, जिनके लिए साधन यहां न होकर, अयोध्या अथवा जनकपुर में होते हैं।"
"आप ठीक कहती हैं; किंतु इससे ये बच्चे कभी भी विद्वान् नहीं हो सकेंगे।" बहुत देर से चुपचाप सुनता हुआ, शुभबुद्धि अब स्वयं को नहीं रोक पाया, "यदि बच्चे बड़े होकर, ऋषि न बन, धातुकर्मी बनेंगे तो शिक्षा का क्या लाभ?"
|