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संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

"इस निर्णय की क्या बात है, सुधा?" राम शांत स्वर में बोले, "क्या एक स्त्री और एक पुरुष की दिनचर्या यह सिद्ध नहीं कर देती कि दोनों संमान रूप से समाज के लिए उपयोगी और सार्थक कार्य करते हैं। इसलिए दोनों को महत्त्व, सम्मान, अधिकार, दायित्व सब कुछ समान है। यदि मंती का पति यह मानता है कि खान का काम अधिक महत्त्वपूर्ण है और इस कारण वह स्वयं अधिक महत्त्वपूर्ण है, तो कल से वह घर का काम संभाले; मंती बाहर का कोई कार्य कर लेंगी।"

"यही तो...।" सुधा की बात बीच में ही रुक गई। उसकी दृष्टि कुटिया की ओर बढ़ती हुई सीता पर पड़ी, "दीदी आ गईं।"

सीता पास आईं तो उनके थके हुए चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई, "तो स्त्री-चर्चा राम तक पहुंचा दी गई?"

"धर्मभृत्य नहीं आया?" राम ने पूछा।

"आ ही रहा है।" सीता बोलीं, "नई शाला की व्यवस्था-संबंधी कुछ कार्य शेष था। वह थोड़ी देर के लिए रुक गया है।"

"थक न गई हो तो, तुम भी चर्चा में भाग लो।" राम बोले।

"आओ दीदी।"

"आई।"

सीता अपने लिए आसन ले आईं, और राम के साथ बैठ गईं।

"मैं यह कह रहा था," राम ने अपनी बात का सूत्र फिर से उठाया, "कि यह समस्या मात्र महिलाओं की नहीं, पूर्ण समाज की समस्या है।"

"मैंने भी यही कहा था," सीता बोलीं, "स्त्री-पुरुष परस्पर विरोधी नहीं हैं कि स्त्रियां पुरुषों के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करें। अच्छा होता, पुरुषों को बैठाकर सारी बातचीत होती।"

"वह भी हो जाएगी दीदी!" सुधा बोली, "हम लोग पहले भद्र राम का विचार जान लेना चाहती थीं।"

"मेरा मत अत्यन्त स्पष्ट है।" राम बोले, "मैं उन समस्त भेदों का विरोधी हूं, जो एक मानव को दूसरे के शोषण का अधिकार देते हैं। स्त्रियों और पुरुषों के लिए घर और बाहर के कार्य निर्माण का यह विभाजन भी सर्वथा कृत्रिम है। नये समाज के साथ इसे भी बदलना चाहिए : स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर घर का काम करें और दोनों ही बाहर का काम करें। हमने यहां यदि ये परिवर्तन नहीं किए हैं, तो उसका कारण केवल इतना ही है कि परंपरा से स्त्रियां जो काम करती हैं, उसे सुविधा से कर लेती हैं; अतः उन्हें अन्य शिक्षाओं के लिए समय मिल जाता है। इसका अर्थ मंती के पति...क्या नाम है उसका मंती?"

मंती ने मुस्कराकर राम की ओर देखा और सिर झुका लिया।

"यह अपने पति का नाम अपने मुख से उच्चरित नहीं करेगी।" सुधा ने बताया।

"क्यों?" क्या वह तुम्हारा शत्रु है कि उसका नाम भी नर्हीं लोगी?" राम बोले।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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