उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"नहीं।" मंती जल्दी से बोली, "सम्मान के कारण।"
"तुम स्वयं ही उसे कारण और अवसर दे रही हो कि वह स्वयं को तुमसे श्रेष्ठ समझे।" राम ने कहा, "यह सम्मान नहीं, जड़ता है। सीता मुझे नाम से संबोधित करें तो इसका अर्थ हुआ कि वह मेरा सम्मान नहीं करतीं, मैं सीता का नाम लेता हूं तो उसका अर्थ यह कैसे हो गया कि मैं सीता का सम्मान नहीं करता। तुम अपने पति से कम नहीं हो, उसके बराबर हो। वह तुम्हारा नाम लेता है?"
"हां!" मंती ने सिर हिलाया।
"तो तुम भी उसका नाम ले सकती हो-लेना चाहिए। यह सुविधाजनक है। बोलो...।"
मंती ने राम को देखा, मानो कठिन आदेश को लौटा लेने की प्रार्थना कर रही हो, फिर सारा आत्मबल बटोरकर बोली, "आतुर!" उसका मुख लज्जा और संकोच से आरक्त हो गया था।
"बाहर का काम करने का यह अर्थ नहीं है कि आतुर, मंती से श्रेष्ठ है; और उसे मंती को पीड़ित करने का अधिकार है। अपनी पत्नी को पीटना भी वैसा ही अपराध है, जैसा किसी अन्य व्यक्ति को पीटना। मंती को चाहिए कि वह इस घटना को बस्ती की पंचायत के सम्मुख न्यायार्थ प्रस्तुत करे...!"
"नहीं! नहीं!" मंती बोली, "उसकी आवश्यकता नहीं आर्य! वह बेचारा अपने अभ्यासवश ही ऐसा करता आ रहा है। अब मैं उसे समझा दूंगी। हां! यदि भविष्य में फिर कभी उसने मुझे मारा तो मैं आपको वचन देती हूं कि अवश्य ही उस प्रकरण को पंचायत के सम्मुख प्रस्तुत करूंगी।"
"यही सही!" राम मुस्कराए, "किंतु यदि भविष्य में ऐसा हुआ और पंचायत में शिकायत नहीं की, तो पंचायत स्वयं ही उस प्रकरण पर विचार करने को स्वतंत्र होगी।" मंती ने सहमति से सिर हिला दिया।
इस बार सुधा उठी, "तो हमें अनुमति दें..."
"अभी मदिरा वाला प्रसंग शेष है।" राम ने बाधा दी, "आतुर को मदिरा कहां से मिलती है?"
"जहां से अन्य पुरुषों को मिलती है।" सुधा ने सहज भाव से कहा, "इसमें आतुर की ही क्या विशेष बात है?"
"शेष पुरुषों को कहां से मिलती है?"
"यह तो आपको अनिन्द्य ही बता सकते हैं।" सुधा धीमे स्वर में बोली, "वे स्वयं ही साप्ताहिक गोष्ठी में इस विषय को लेकर आपके पास आने वाले हैं।"
"तो ठीक है। मैं उसी से बात कर लूंगा।"
बस्ती की महिलाएं चली गईं। राम भी कुटिया के भीतर चले आए। अभी तक न लक्ष्मण लौटे थे, न धर्मभृत्य ही आया था। मुखर
भीखन के साथ उसके गांव जा चुका था। राम का मन फिर से जैसे अन्यमनस्क-सा हो, इधर-उधर भटकने लग गया था।
सीता आकर उनके पास बैठ गईं, "आज कुछ उदास हैं?"
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